कोई तो आवाज़ लगाए

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sweta gupta

11 Aug 20241 min read

Published in poetry

कोई तो आवाज़ लगाए

ढूंढती है मेरी ये नजरें, की कहीं तो वो दिख जाए,
राह चलते, कभी तो पीछे से आवाज़ लगाए।

जब मैं उदास हूं, कभी तो हंसाने आ जाए,
जब हिम्मत ना हो आगे बढ़ने की, मेरे साथ खड़े हो जाए।

जो मैं गुम हो जाऊं, मुझे ढूंढने आ जाए,
जो मैं ना मिलू , मुझे खोने से घबराएं।

मेरा चेहरा देख, मेरे मन को पढ़ जाए,
जो मैं गुमसुम हूं, प्यार के दो मीठे बोल कर जाए।

जो आस ना हो किसी चीज़ की, मन में उत्साह जगा जाएं,
ठोकर लगने से पहले, मेरी ढाल बन जाएं।

जब हाथ पकड़ने का मन हो, मेरे पास आ जाए,
जब चांद देखने का मन हो, मेरे पास बैठ जाए।

हंस पड़ी मैं अपनी इन अपेक्षाओं को देखकर,
मैं ख़ुद में ही काफी हूं, अपनी अपेक्षाओं को छोड़कर।

रचयिता,
स्वेता गुप्ता

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कोई तो आवाज़ लगाए

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sweta gupta

11 Aug 20241 min read

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कोई तो आवाज़ लगाए

ढूंढती है मेरी ये नजरें, की कहीं तो वो दिख जाए,
राह चलते, कभी तो पीछे से आवाज़ लगाए।

जब मैं उदास हूं, कभी तो हंसाने आ जाए,
जब हिम्मत ना हो आगे बढ़ने की, मेरे साथ खड़े हो जाए।

जो मैं गुम हो जाऊं, मुझे ढूंढने आ जाए,
जो मैं ना मिलू , मुझे खोने से घबराएं।

मेरा चेहरा देख, मेरे मन को पढ़ जाए,
जो मैं गुमसुम हूं, प्यार के दो मीठे बोल कर जाए।

जो आस ना हो किसी चीज़ की, मन में उत्साह जगा जाएं,
ठोकर लगने से पहले, मेरी ढाल बन जाएं।

जब हाथ पकड़ने का मन हो, मेरे पास आ जाए,
जब चांद देखने का मन हो, मेरे पास बैठ जाए।

हंस पड़ी मैं अपनी इन अपेक्षाओं को देखकर,
मैं ख़ुद में ही काफी हूं, अपनी अपेक्षाओं को छोड़कर।

रचयिता,
स्वेता गुप्ता

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