एहसास

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meenu yatin

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

एहसास

जाने क्या ये मंजर है
जाने क्यों रोज  तमाशा है
इंसा, इंसा का भूखा है
लहू, लहू का प्यासा है।

रिश्ते-नाते दुनियादारी
हम सबकी भी कुछ जिम्मेदारी है
उस कुदरत का एहसान
इंसान पे अभी उधारी है ।

खुद भी खुशी से जी लो ना
औरों को भी खुश रहने दो
किसने कहा ,किसने सुना
हो तुम गलत  या मै सही
इन बातों में कुछ रखा भी नही।

न रूप कहीं एक जैसा है
न बोल कही एक जैसे हैं
ये बगिया रंगो से भरी पडी़
खुशबू अलग क्यारी क्यारी है ।

ये दुनिया कितनी सुदंर है
ये धरती कितनी है प्यारी है
इसकी सुंदरता मत छीनो
घर को हिस्सों में मत बाँटो
हँसी-खुशी से बढ़ करके।

दोस्तों कोई उपहार नहीं
बन सको तो सहारा किसी का
नफरत न दो  ,दुत्कार नहीं
अपनेपन सा यारों कोई प्यार नहीं ।

 

मीनू यतिन

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एहसास

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meenu yatin

28 Jul 20241 min read

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एहसास

जाने क्या ये मंजर है
जाने क्यों रोज  तमाशा है
इंसा, इंसा का भूखा है
लहू, लहू का प्यासा है।

रिश्ते-नाते दुनियादारी
हम सबकी भी कुछ जिम्मेदारी है
उस कुदरत का एहसान
इंसान पे अभी उधारी है ।

खुद भी खुशी से जी लो ना
औरों को भी खुश रहने दो
किसने कहा ,किसने सुना
हो तुम गलत  या मै सही
इन बातों में कुछ रखा भी नही।

न रूप कहीं एक जैसा है
न बोल कही एक जैसे हैं
ये बगिया रंगो से भरी पडी़
खुशबू अलग क्यारी क्यारी है ।

ये दुनिया कितनी सुदंर है
ये धरती कितनी है प्यारी है
इसकी सुंदरता मत छीनो
घर को हिस्सों में मत बाँटो
हँसी-खुशी से बढ़ करके।

दोस्तों कोई उपहार नहीं
बन सको तो सहारा किसी का
नफरत न दो  ,दुत्कार नहीं
अपनेपन सा यारों कोई प्यार नहीं ।

 

मीनू यतिन

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