
एहसास

एहसास
जाने क्या ये मंजर है
जाने क्यों रोज तमाशा है
इंसा, इंसा का भूखा है
लहू, लहू का प्यासा है।
रिश्ते-नाते दुनियादारी
हम सबकी भी कुछ जिम्मेदारी है
उस कुदरत का एहसान
इंसान पे अभी उधारी है ।
खुद भी खुशी से जी लो ना
औरों को भी खुश रहने दो
किसने कहा ,किसने सुना
हो तुम गलत या मै सही
इन बातों में कुछ रखा भी नही।
न रूप कहीं एक जैसा है
न बोल कही एक जैसे हैं
ये बगिया रंगो से भरी पडी़
खुशबू अलग क्यारी क्यारी है ।
ये दुनिया कितनी सुदंर है
ये धरती कितनी है प्यारी है
इसकी सुंदरता मत छीनो
घर को हिस्सों में मत बाँटो
हँसी-खुशी से बढ़ करके।
दोस्तों कोई उपहार नहीं
बन सको तो सहारा किसी का
नफरत न दो ,दुत्कार नहीं
अपनेपन सा यारों कोई प्यार नहीं ।
मीनू यतिन
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