
वक्त
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वक्त
वक्त किसी का नही होता
कभी रुकता नही
कभी झुकता नही,
अपने मायने बदलता है
वक्त साथ नही देता,
बस परछाइयाँ रह जाती है।
दो घड़ी ज्यादा देता नही
बादशाही भुला देता है.
बचपन हो बुढापा हो
सब छूकर गुजर जाता है
कभी मेला कभी सुनसान,
वक्त की यही पहचान ।
कभी रुप भाषा बदलता नही
कभी वक्त अपना बनता नही,
सीमाये मर्यादायें इसकी होती नही
वक्त कभी महलों में सोता नही ।
रुख बदलकर जीवन बदल जाता है
वक्त से आगे कहां कोई निकल पाता है ।
@रेणु
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