खुमार बारिश का 

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arati samant

29 Jul 20242 min read

Published in poetry

खुमार बारिश का     

महीनों चिलचिलाती गरमी और धूप के बाद,
कई मर्तबा खुद को पसीने से भीगने के बाद
आज जब आयी है पहली बारिश की फुहार
तो छोड़कर सारे काम आज तो भीगना बनता है।

मन की क्या ख्वाहिशें हैं वो बताते नहीं हम सभी
जिम्मेदारियों के बोझ तले भूल जाते हैं वो ख्वाब देखे थे जो कभी
पैसे कमाने की चाहत में खुद रोज़ खर्च होते जा रहे हैं
स्कूल जाते बच्चों को छतरी रेनकोट में देख मन मचले तो भीगना बनता है

सबको खुश करने की धुन में अपनी खुशी गुम सी हो गई
बचपन की शरारतें तमीज़ में बदलकर खामोश सी हो गई
बड़ा बनने और दिखने की चाहत में मन मारकर बैठे हैं
बेफिक्री वाला वो बचपन गर फिर से हो जीना तो भीगना बनता है ।

घड़ी की सुईयों जैसी जिंदगी की रफ्तार बढती रहती है,
वक़्त बदलता है, हम भागते फिरते हैं दुनिया वहीं रहती है
लोग क्या कहेंगे यही सोचने में जिंदगी बिता देते हैं
हार जीत से परे, लोगों की फिक्र से हो अगर बेफिक्र, तो भीगना बनता है।

जो दिल को लगे अच्छा उसके पास रहो और उसका ज़िक्र करो,
जिसे नहीं पा सकते या जो नहीं मिला बेकार में उसकी मत फिक्र करो।
जिंदगी के इस सफर में ना जाने कितनों को खोया और पाया है
खोनेवाले की याद में आये अश्कों को, गर हो छुपाना तो भीगना बनता है

बारिश की बूंदे हो या आँखों के आँसू सब पानी ही कहलाते हैं,
कोई खुशी की कोई गम की बारिश में हम सबको नहलाते हैं।
अबकी आयी है तो बरस गये अगले साल शायद तरसे क्या पता
तो छोड़कर सारी फिकर, अपने पिंजरों तोड़कर, हम सबका भीगना तो बनता है।

 

आरती सामंत

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खुमार बारिश का     

महीनों चिलचिलाती गरमी और धूप के बाद,
कई मर्तबा खुद को पसीने से भीगने के बाद
आज जब आयी है पहली बारिश की फुहार
तो छोड़कर सारे काम आज तो भीगना बनता है।

मन की क्या ख्वाहिशें हैं वो बताते नहीं हम सभी
जिम्मेदारियों के बोझ तले भूल जाते हैं वो ख्वाब देखे थे जो कभी
पैसे कमाने की चाहत में खुद रोज़ खर्च होते जा रहे हैं
स्कूल जाते बच्चों को छतरी रेनकोट में देख मन मचले तो भीगना बनता है

सबको खुश करने की धुन में अपनी खुशी गुम सी हो गई
बचपन की शरारतें तमीज़ में बदलकर खामोश सी हो गई
बड़ा बनने और दिखने की चाहत में मन मारकर बैठे हैं
बेफिक्री वाला वो बचपन गर फिर से हो जीना तो भीगना बनता है ।

घड़ी की सुईयों जैसी जिंदगी की रफ्तार बढती रहती है,
वक़्त बदलता है, हम भागते फिरते हैं दुनिया वहीं रहती है
लोग क्या कहेंगे यही सोचने में जिंदगी बिता देते हैं
हार जीत से परे, लोगों की फिक्र से हो अगर बेफिक्र, तो भीगना बनता है।

जो दिल को लगे अच्छा उसके पास रहो और उसका ज़िक्र करो,
जिसे नहीं पा सकते या जो नहीं मिला बेकार में उसकी मत फिक्र करो।
जिंदगी के इस सफर में ना जाने कितनों को खोया और पाया है
खोनेवाले की याद में आये अश्कों को, गर हो छुपाना तो भीगना बनता है

बारिश की बूंदे हो या आँखों के आँसू सब पानी ही कहलाते हैं,
कोई खुशी की कोई गम की बारिश में हम सबको नहलाते हैं।
अबकी आयी है तो बरस गये अगले साल शायद तरसे क्या पता
तो छोड़कर सारी फिकर, अपने पिंजरों तोड़कर, हम सबका भीगना तो बनता है।

 

आरती सामंत

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