बंद मुठ्ठी सवा लाख की !!

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धनेश परमार

29 Jul 20243 min read

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बंद मुठ्ठी सवा लाख की !!

 

एक समय एक राज्य में  राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा।

इतना सुनते ही  मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दिया, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने  ₹ 6000/- का कर्ज लिया ।

नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में चार आने दक्षिणा स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए !

पूजा की थाली में चार आने देखकर पुजारी बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी पर चार आने !!

बहुत ही दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा !!!

गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया की राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं।

लोग समझे की राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली ₹10,000/- से शुरू हुई।

₹10,000/- की बोली बढ़ते बढ़ते ₹50,000/- तक पहुंची और पुजारी ने वो वस्तु फिर भी देने से इनकार कर दिया। यह बात राजा के कानों तक पहुंची।

राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम ना करें मैं तुम्हें ₹ 50,000/- की बजाय सवा लाख रुपए देता हूं और इस प्रकार राजा ने सवा लाख रुपए देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया  !

तब से यह कहावत बनी बंद मुट्ठी सवा लाख की खुल गई तो खाक की !!

यह मुहावरा आज भी प्रचलन में है।

ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय तीन विशेष रचना की…

  1. अनाज में कीड़े पैदा कर दिए, वरना लोग इसका सोने और चाँदी की  तरह संग्रह करते।

  2. मृत्यु के बाद देह (शरीर) में दुर्गंध उत्पन्न कर दी, वरना कोई अपने प्यारों को कभी भी  जलाता या दफ़न नहीं करता।

  3. जीवन में किसी भी प्रकार के संकट या अनहोनी के साथ रोना और समय के साथ भुलना दिया, वरना जीवन में निराशा और अंधकार ही रह जाता, कभी भी आशा, प्रसन्नता या जीने की इच्छा नहीं होती।

 

जीना सरल है…..  प्यार करना सरल है…..  हारना और जीतना भी सरल है…

तो फिर कठिन क्या है ? सरल होना बहुत कठिन है।

आपका दिन मंगलमय हो

 

 

धनेश परमार

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धनेश परमार

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बंद मुठ्ठी सवा लाख की !!

 

एक समय एक राज्य में  राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा।

इतना सुनते ही  मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दिया, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने  ₹ 6000/- का कर्ज लिया ।

नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में चार आने दक्षिणा स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए !

पूजा की थाली में चार आने देखकर पुजारी बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी पर चार आने !!

बहुत ही दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा !!!

गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया की राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं।

लोग समझे की राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली ₹10,000/- से शुरू हुई।

₹10,000/- की बोली बढ़ते बढ़ते ₹50,000/- तक पहुंची और पुजारी ने वो वस्तु फिर भी देने से इनकार कर दिया। यह बात राजा के कानों तक पहुंची।

राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम ना करें मैं तुम्हें ₹ 50,000/- की बजाय सवा लाख रुपए देता हूं और इस प्रकार राजा ने सवा लाख रुपए देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया  !

तब से यह कहावत बनी बंद मुट्ठी सवा लाख की खुल गई तो खाक की !!

यह मुहावरा आज भी प्रचलन में है।

ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय तीन विशेष रचना की…

  1. अनाज में कीड़े पैदा कर दिए, वरना लोग इसका सोने और चाँदी की  तरह संग्रह करते।

  2. मृत्यु के बाद देह (शरीर) में दुर्गंध उत्पन्न कर दी, वरना कोई अपने प्यारों को कभी भी  जलाता या दफ़न नहीं करता।

  3. जीवन में किसी भी प्रकार के संकट या अनहोनी के साथ रोना और समय के साथ भुलना दिया, वरना जीवन में निराशा और अंधकार ही रह जाता, कभी भी आशा, प्रसन्नता या जीने की इच्छा नहीं होती।

 

जीना सरल है…..  प्यार करना सरल है…..  हारना और जीतना भी सरल है…

तो फिर कठिन क्या है ? सरल होना बहुत कठिन है।

आपका दिन मंगलमय हो

 

 

धनेश परमार

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