गहराइयाँ

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namrata gupta

21 Jul 20241 min read

Published in poetry

गहराइयाँ

दिल की गहराइयों में,
उतर कर तो देखो,
“सागर” से भी गहरा है ये।
हर एक ख़ामोशी दबी है वहा पे,
काफी दूर जाकर ठहरा है ये,
इन गहराईयों को मापने की कोशिश न करना।

इनको न समझ सको तो,
रंजिश न करना,
परछाइयां भी जब साथ देना छोड़ देती है,
ये गहराइयां ही है जो,
सबकुछ अपने अंदर समेट लेती है।

गहराइयाँ आँखों की हो या दिल की,
हर दर्द को अपने में बसा ही लेती है,
किसी ने ठीक ही कहा है,
“दिल की गहराईयों को आवाज़ बना लेते है
दर्द जब हद से गुजरता है तो गा लेते है”

 

रचयिता नम्रता गुप्ता

 

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21 Jul 20241 min read

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गहराइयाँ

दिल की गहराइयों में,
उतर कर तो देखो,
“सागर” से भी गहरा है ये।
हर एक ख़ामोशी दबी है वहा पे,
काफी दूर जाकर ठहरा है ये,
इन गहराईयों को मापने की कोशिश न करना।

इनको न समझ सको तो,
रंजिश न करना,
परछाइयां भी जब साथ देना छोड़ देती है,
ये गहराइयां ही है जो,
सबकुछ अपने अंदर समेट लेती है।

गहराइयाँ आँखों की हो या दिल की,
हर दर्द को अपने में बसा ही लेती है,
किसी ने ठीक ही कहा है,
“दिल की गहराईयों को आवाज़ बना लेते है
दर्द जब हद से गुजरता है तो गा लेते है”

 

रचयिता नम्रता गुप्ता

 

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