
काश !

काश !
खुद से है या खुदा से रुठा हुआ कोई
दिखता तो है पूरा सा मगर टूटा हुआ कोई
देखता है मुड़ के जाने क्या बार -बार मन
लगता है आ रहा है छूटा हुआ कोई
छूट जाये तो शायद मिल ही जाए कहीं
जो छोड़ जाए दुनिया अपनी
उसे कैसे वापस पाए कोई
मन है कि समझाए समझता भी नहीं
जिद्दी है, नासमझ ! किसी बच्चे सा है
इसको किस तरह मनाए कोई
रो रो के थक गई हैं
आँखो की लाली बताती है
याद आती है तो आँख आप ही भर जाती है
ख्याल दिन रात रहे
न होकर भी कोई साथ रहे
काश !के ऐसा कुछ न होता
काश ! वो दूर ही होता
मगर यूँ जुदा न होता ….
मीनू यतिन
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