वजूद

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meenu yatin

17 Aug 20241 min read

Published in poetry

वजूद

 

क्यों ढूँढते हो मुझे हर किसी में ।
मैं मिलूंगी तुम्हें बस तुम्हीं में ।।

समां के तुम्हारी सासों में
चलूंगी तुम्हारी धड़कनों के साथ ।
मैं क्या हूँ, और क्या नहीं
समझोगे मगर
मुझे खोने के बाद ।।

मेरा वजूद किसी ने समझा ।
रेत का जर्रा
किसी के वास्ते
कोई भी नहीं मुझ सा ।।

जिसकी रही सोच जैसी
वैसे देखा उसने ।
किसी को खुद सा कहाँ
समझा किसी ने ।।

बहुत आसान है
अच्छा बुरा कहना किसी को ।
बेहद मुश्किल है
उसकी जगह रखना खुद ही को ।।

 

मीनू यतिन

 

Photo by Maksudur Rahman: https://www.pexels.com/photo/a-woman-wearing-a-saree-dress-13724170/

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meenu yatin

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वजूद

 

क्यों ढूँढते हो मुझे हर किसी में ।
मैं मिलूंगी तुम्हें बस तुम्हीं में ।।

समां के तुम्हारी सासों में
चलूंगी तुम्हारी धड़कनों के साथ ।
मैं क्या हूँ, और क्या नहीं
समझोगे मगर
मुझे खोने के बाद ।।

मेरा वजूद किसी ने समझा ।
रेत का जर्रा
किसी के वास्ते
कोई भी नहीं मुझ सा ।।

जिसकी रही सोच जैसी
वैसे देखा उसने ।
किसी को खुद सा कहाँ
समझा किसी ने ।।

बहुत आसान है
अच्छा बुरा कहना किसी को ।
बेहद मुश्किल है
उसकी जगह रखना खुद ही को ।।

 

मीनू यतिन

 

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