आस

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meenu yatin

17 Aug 20241 min read

Published in poetry

आस

रिस रहा है गम धीरे धीरे।
हो रही हैं आँखे नम धीरे -धीरे।

कोई तो सुनेगा ये व्यथा हमारी
कभी तो भरेगा जख्म धीरे-धीरे।

कभी आएगी सुबह भरपूर रोशनी की
कभी तो ढलेगी ये रात काली
कोई लगाएगा मरहम धीरे- धीरे।

तुम्हारी सनक है , हमारी तड़प है
अजब सा मंजर, हर तरफ है
कभी इसने रोका, कभी उसने बाँधा
कभी तो बढेंगें कदम धीरे धीरे।

 

मीनू यतिन

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आस

रिस रहा है गम धीरे धीरे।
हो रही हैं आँखे नम धीरे -धीरे।

कोई तो सुनेगा ये व्यथा हमारी
कभी तो भरेगा जख्म धीरे-धीरे।

कभी आएगी सुबह भरपूर रोशनी की
कभी तो ढलेगी ये रात काली
कोई लगाएगा मरहम धीरे- धीरे।

तुम्हारी सनक है , हमारी तड़प है
अजब सा मंजर, हर तरफ है
कभी इसने रोका, कभी उसने बाँधा
कभी तो बढेंगें कदम धीरे धीरे।

 

मीनू यतिन

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