
आस

आस
रिस रहा है गम धीरे धीरे।
हो रही हैं आँखे नम धीरे -धीरे।
कोई तो सुनेगा ये व्यथा हमारी
कभी तो भरेगा जख्म धीरे-धीरे।
कभी आएगी सुबह भरपूर रोशनी की
कभी तो ढलेगी ये रात काली
कोई लगाएगा मरहम धीरे- धीरे।
तुम्हारी सनक है , हमारी तड़प है
अजब सा मंजर, हर तरफ है
कभी इसने रोका, कभी उसने बाँधा
कभी तो बढेंगें कदम धीरे धीरे।
मीनू यतिन
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