
याद

याद
कुछ तो बदल ही जाता है
कोई भी पहले सा नहीं लगता
जिससे भी मिलो
अधूरा सा लगता है
कोई भी शख्स
पूरा नहीं लगता
घर की दीवारों पर
कुछ तसवीरें
बनी है
कुछ पूरी सी,
कुछ में रंगों की कमी है
मैं चाह कर भी
मिटा नहीं सकती उसे
उसमें मेहनत तेरी बसी है
हर कोने में तेरी
याद घूमती है
तुम आओगे लौट कर
तो ठहाके गूंज उठेगें
तुम क्या गये कि
घर घर नहीं लगता ।
मीनू यतिन
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