शुरुआत बस एक थप्पड़ से हुई थी

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aparna ghosh

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

शुरुआत बस एक थप्पड़ से हुई थी

शुरुआत बस एक थप्पड़ से हुई थी,

आजकल रोज़ ही यही बात है,

प्रेम और इज़्ज़त जिससे मिलनी थी,

उसी के जुल्मों का उत्पात है।

 

कभी गाल फूल जाता उसका,

कभी दर्द से रहती बेहाल है ,

आज फिर आँसुओं ने लोरी गाई ,

बिखरा काजल बताता हाल है।

 

पहले तो सुबह ही माफी मांगता था,

आज तो सिर्फ़ मारता हक से है,

जाने क्या गलती हो गयी उससे,

देखता उसी को शक से है,

 

शायद विस्मित होता होगा,

इतने के बाद भी ज़िन्दा है,

क्या जाने वो पागल,

अपनेआप से खुद शर्मिंदा है,

 

बस शरीर ही तो बाकी है,

आत्मा ने दम तोड़ दिया है,

सम्मान ने आत्महत्या की है,

हँसी ने साथ छोड़ दिया है,

 

सोचती है क्यों उसने ,

वो पहला थप्पड़ सहन किया,

अत्याचार का बोझ नासमझ ने,

नासमझी में ही वहन किया,

 

बस इंतज़ार करती रही,

वो एकदिन बदल जाएगा,

कुछ नहीं बदलता जब तक,

बदलाव खुद में नहीं आएगा,

 

कमज़ोर हमें समझती दुनिया,

कमज़ोरी हम ही दिखाते है,

अत्याचार होता जब है,

हम चुपचाप उसे सह जाते है,

 

बहुत ज़रूरी है प्रतिवाद,

प्रतिवाद करना ही शक्ति है,

खुद के लिए की गई हर लड़ाई,

पूरी नारी जाति की मुक्ति है।।

 

स्वरचित एवं मौलिक

©अपर्णा

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शुरुआत बस एक थप्पड़ से हुई थी

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aparna ghosh

28 Jul 20241 min read

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शुरुआत बस एक थप्पड़ से हुई थी

शुरुआत बस एक थप्पड़ से हुई थी,

आजकल रोज़ ही यही बात है,

प्रेम और इज़्ज़त जिससे मिलनी थी,

उसी के जुल्मों का उत्पात है।

 

कभी गाल फूल जाता उसका,

कभी दर्द से रहती बेहाल है ,

आज फिर आँसुओं ने लोरी गाई ,

बिखरा काजल बताता हाल है।

 

पहले तो सुबह ही माफी मांगता था,

आज तो सिर्फ़ मारता हक से है,

जाने क्या गलती हो गयी उससे,

देखता उसी को शक से है,

 

शायद विस्मित होता होगा,

इतने के बाद भी ज़िन्दा है,

क्या जाने वो पागल,

अपनेआप से खुद शर्मिंदा है,

 

बस शरीर ही तो बाकी है,

आत्मा ने दम तोड़ दिया है,

सम्मान ने आत्महत्या की है,

हँसी ने साथ छोड़ दिया है,

 

सोचती है क्यों उसने ,

वो पहला थप्पड़ सहन किया,

अत्याचार का बोझ नासमझ ने,

नासमझी में ही वहन किया,

 

बस इंतज़ार करती रही,

वो एकदिन बदल जाएगा,

कुछ नहीं बदलता जब तक,

बदलाव खुद में नहीं आएगा,

 

कमज़ोर हमें समझती दुनिया,

कमज़ोरी हम ही दिखाते है,

अत्याचार होता जब है,

हम चुपचाप उसे सह जाते है,

 

बहुत ज़रूरी है प्रतिवाद,

प्रतिवाद करना ही शक्ति है,

खुद के लिए की गई हर लड़ाई,

पूरी नारी जाति की मुक्ति है।।

 

स्वरचित एवं मौलिक

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