
राह नई
राह नई
जो कल था वह तो बीत गया,
कल का रास्ता छूट गया,
राह अब नई बनानी है,
सीमा भी और बढ़ानी है।
चुप बैठोगे तो बात ना बढ़ेगी,
परिस्थितियाँ खुद ब खुद नहीं
बदलेंगी
मुश्किलें और बढ़ेगी।
आओ मिलकर एक सपना देखे,
बडा, विशाल और सुनहरा देखे,
दो तीन शहरों की क्यूँ बात करे,
संपूर्ण विश्व को बदलता देखे।
इस नई कहानी में,
हर एक को नायक बनना होगा
हर एक को बदलना होगा,
क्या सही क्या गलत
हर एक को यह चुनना होगा,
मै राह नई बताता हूँ।
है संभव यह समझाता हूँ।
होगी परीक्षा कठिन जरूर,
पर हिम्मत भी बंधाता हूँ।
रचयिता- दिनेश कुमार सिंह
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