मैग्गी और चाय की पार्टी

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dineshkumar singh

28 Jul 20243 min read

Published in stories

मैग्गी और चाय की पार्टी

 

क्या कभी आपने मैग्गी नूडल्स और चाय का मज़ा लिया हैं ?

२००८ काफी कठिनाईयों का दौर था। कई महीनों तक हमें रात रात भर ऑफिस में काम करना पड़ता। कई शिफ़्ट में काम चलता। प्रोजेक्ट मैनेजर के नाते, मुझे अक्सर दोनो शिफ़्ट में रूकना पड़ता। धीरे धीरे आदत सी पड़ने लगी। रात में अक्सर कभी ११ बजे तो कभी १२ और कभी कभी तो २ बजे हमारी कस्टमर से मीटिंग्स होती थी।  दिन क्या और रात क्या!  ऑफिस की दूधिया लाइट की रोशनी में, सब एक जैसा लगता।  

रात्रि की शिफ़्ट में, अक्सर १० बजे के बाद सन्नाटा सा पसर जाता।  बच जाते, सिर्फ कुछ मेरे टीम के गिने चुने ४-५ लोग। १२-१ बजे तक तो वो सब भी अपने कीबोर्ड की खटर पटर में व्यस्त होते। कोई ख़ुशी से तो इतने रात को ऑफिस में नहीं बैठेगा ! तो उनकी भी कोशिश होती की, जितनी जल्दी हो, उतनी जल्दी काम ख़त्म करे और इसके पहले की निद्रा परी अपने आगोश में ले ले, अपने आशियाने के लिए निकल जाए। पर कुछ दिन (sorry रात) ऐसे भी होते, जब यह मुमकिन नहीं होता।

उन दिनों एक अच्छी बात यह हुई की रात्रि के समय हम जैसे लोगों के लिए कैंटीन सुविधा उपलब्ध कर दी गई थी।  बेचारे कैंटीन के कर्मचारी ! गेहूँ के साथ घुन भी पीस जाता है। जब रात्रि के २ बजे के आसपास, हमारा शरीर जवाब देने लगता और गर्दन के ऊपर का एक किलो का सिर लुढ़कने लगता, तब हम कैंटीन के साथ “फोन ए फ्रेंड” खेलते। तब हम मैग्गी नूडल्स और चाय का आर्डर देते।

उसके आने में २०-३० मिनट तो निकल जाता, पर उसके इंतज़ार में नींद भी बिखर जाती।  फिर जैसे ही हमारे विंग का दरवाजा कर्र करके खुलता, तो चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती। गरमा गरम, पानी वाला मैग्गी नूडल्स की महक सारे विंग में फ़ैल जाती। हम सडप सडप की आवाज़ करके उसे खाते और कौन ज्यादा अच्छा आवाज़ निकालता है, इसकी स्पर्धा लग जाती।

इसके बाद बारी आती गरमा गरम, दूध वाली चाय की।  चाय के पहले घूट के साथ लगता, मानो सुबह हो गई।  सिर्फ मुंह में ही नहीं, पर पूरे शरीर में ताज़गी भर जाती।  उस काली गहरी रात में, यह चाय हमें, अगले डेढ़ दो घंटे काम करने की और ऊर्जा दे देती। कई बार तो लगता की चाय ही मेरी दो शिफ़्ट में बने रहने का कारण है।  हो भी क्यूँ ना, जब मै पूरे दिन भर में ७-८ कप चाय पी जाता था।

दौर सचमुच कठिन था, पर बीत गया। पर अपने पीछे ऐसी कई कहानियाँ छोड़ गया। जब कभी टीम पूछती की ऐसी सज़ा सिर्फ उन्हें ही क्यों, तो मै हँसकर यह टाल देता की अरे यह सज़ा कहाँ, ये तो सेलिब्रेशन (उत्सव) है – इस तरह की मैग्गी और चाय की पार्टी सभी को थोड़ी नसीब होती है।

बस नजरिये का फर्क है।

 

 

दिनेश कुमार सिंह

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dineshkumar singh

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मैग्गी और चाय की पार्टी

 

क्या कभी आपने मैग्गी नूडल्स और चाय का मज़ा लिया हैं ?

२००८ काफी कठिनाईयों का दौर था। कई महीनों तक हमें रात रात भर ऑफिस में काम करना पड़ता। कई शिफ़्ट में काम चलता। प्रोजेक्ट मैनेजर के नाते, मुझे अक्सर दोनो शिफ़्ट में रूकना पड़ता। धीरे धीरे आदत सी पड़ने लगी। रात में अक्सर कभी ११ बजे तो कभी १२ और कभी कभी तो २ बजे हमारी कस्टमर से मीटिंग्स होती थी।  दिन क्या और रात क्या!  ऑफिस की दूधिया लाइट की रोशनी में, सब एक जैसा लगता।  

रात्रि की शिफ़्ट में, अक्सर १० बजे के बाद सन्नाटा सा पसर जाता।  बच जाते, सिर्फ कुछ मेरे टीम के गिने चुने ४-५ लोग। १२-१ बजे तक तो वो सब भी अपने कीबोर्ड की खटर पटर में व्यस्त होते। कोई ख़ुशी से तो इतने रात को ऑफिस में नहीं बैठेगा ! तो उनकी भी कोशिश होती की, जितनी जल्दी हो, उतनी जल्दी काम ख़त्म करे और इसके पहले की निद्रा परी अपने आगोश में ले ले, अपने आशियाने के लिए निकल जाए। पर कुछ दिन (sorry रात) ऐसे भी होते, जब यह मुमकिन नहीं होता।

उन दिनों एक अच्छी बात यह हुई की रात्रि के समय हम जैसे लोगों के लिए कैंटीन सुविधा उपलब्ध कर दी गई थी।  बेचारे कैंटीन के कर्मचारी ! गेहूँ के साथ घुन भी पीस जाता है। जब रात्रि के २ बजे के आसपास, हमारा शरीर जवाब देने लगता और गर्दन के ऊपर का एक किलो का सिर लुढ़कने लगता, तब हम कैंटीन के साथ “फोन ए फ्रेंड” खेलते। तब हम मैग्गी नूडल्स और चाय का आर्डर देते।

उसके आने में २०-३० मिनट तो निकल जाता, पर उसके इंतज़ार में नींद भी बिखर जाती।  फिर जैसे ही हमारे विंग का दरवाजा कर्र करके खुलता, तो चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती। गरमा गरम, पानी वाला मैग्गी नूडल्स की महक सारे विंग में फ़ैल जाती। हम सडप सडप की आवाज़ करके उसे खाते और कौन ज्यादा अच्छा आवाज़ निकालता है, इसकी स्पर्धा लग जाती।

इसके बाद बारी आती गरमा गरम, दूध वाली चाय की।  चाय के पहले घूट के साथ लगता, मानो सुबह हो गई।  सिर्फ मुंह में ही नहीं, पर पूरे शरीर में ताज़गी भर जाती।  उस काली गहरी रात में, यह चाय हमें, अगले डेढ़ दो घंटे काम करने की और ऊर्जा दे देती। कई बार तो लगता की चाय ही मेरी दो शिफ़्ट में बने रहने का कारण है।  हो भी क्यूँ ना, जब मै पूरे दिन भर में ७-८ कप चाय पी जाता था।

दौर सचमुच कठिन था, पर बीत गया। पर अपने पीछे ऐसी कई कहानियाँ छोड़ गया। जब कभी टीम पूछती की ऐसी सज़ा सिर्फ उन्हें ही क्यों, तो मै हँसकर यह टाल देता की अरे यह सज़ा कहाँ, ये तो सेलिब्रेशन (उत्सव) है – इस तरह की मैग्गी और चाय की पार्टी सभी को थोड़ी नसीब होती है।

बस नजरिये का फर्क है।

 

 

दिनेश कुमार सिंह

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