
जीवन एक दर्पण
जीवन एक दर्पण
जीवन दर्पण है
जो है वो दिखलाता है,
तुम रोओ तो रोता है,
तुम हँसते हो, तो
मुस्कराता है।
जीवन दर्पण है
जो है वो दिखलाता है।
जीवन के वन में,
कई जीव है,
उसमें तुम हो,
तुम्हारे है,
कुछ जाने अनजाने है।
दर्पण में बस,
कुछ जीव समाते है,
बाकी शेष रह जाता है।
जीवन दर्पण है
जो है वो दिखलाता है,
दर्पण, जीवन के तन और मन,
दोनों की छवि दिखाता है।।2।।
बाहरी चोट और खुशियाँ
तो सभी को दिखे,
दर्पण से लेकिन
मन का चित्र भी
ना छुप पाता है।
जीवन दर्पण है
जो है वो दिखलाता है।
रचयिता- दिनेश कुमार सिंह
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