
कुंभार
#DIWALI
कुंभार
आँखों में सपने भरकर
वह कुंभार,
दीये बनाता जाता,
गीली मिट्टी में आकार
गढ़ता जाता।
दो हफ़्तों में दिवाली थी,
जब यह दिये बिक जाएंगे,
उनसे मिली मजदूरी से,
उसके घर के दिये भी
जल जाएंगे।
पर अब ज्यादातर घरों में,
बिजली के दिये
जगमगाते है।
उनकी प्रखर रोशनी में,
मिट्टी के दियों की रोशनी
फीकी पड़ जाते हैं।
साल का सबसे बड़ा त्योहार है
दीपावली,
पर बढ़ती महंगाई में,
दियों, पटाखों की बिक़वाली
कम है,
जिनके घर भरे संसाधनों से,
उनके घर तो ज्यादा है,
गरीबों के घर
दिवाली कम है।
अचानक कुंभार का हात
चाक से भटक जाता है,
एक दिया,
चटक जाता है,
लौट कर वह ख्यालों से
काम में फिर जुड़ जाता है
गीली मिट्टी में दीये का
आकार, गढ़ता जाता।
रचयिता
दिनेश कुमार सिंह
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