बूढ़ा सा दिसंबर

Avatar
aparna ghosh

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

#NEWYEAR2023

 

बूढ़ा सा दिसंबर

 

एक बूढ़ा सा दिसंबर,

सेंक रहा दुपहरी की धूप,

उठा रहा फेंके हुए छिलके,

बदल रहा उसका भी स्वरूप।

 

बांध रहा पोटली अपनी,

अंत बस कुछ पास है

कितनी मीठी खट्टी यादें,

जीवन जब तक सांस है।

 

जनवरी की शीत भी देखी,

मार्च का मधुमास भी,

मई का उफनता ताप देखा,

जुलाई में बारिश की आस भी।

 

कुछ खुशी के फव्वारे देखे,

कुछ गम की शाम भी ,

कुछ दौड़ते भागते कदम,

कुछ क्षण का आराम भी।

 

देखे जन्म के उत्सव कहीं,

देखा मृत्यु का नाच भी,

अनजानों का दोस्ताना देखा,

अपनो की द्वेष की आंच भी।

 

अब जब क्षण कुछ ही,

दिल में बस ये आता है,

शेष कभी कुछ होता नहीं,

सिर्फ़ रूप बदलता जाता है ।

 

स्वरचित एवं मौलिक,

©अपर्णा

Comments (0)

Please login to share your comments.



बूढ़ा सा दिसंबर

Avatar
aparna ghosh

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

#NEWYEAR2023

 

बूढ़ा सा दिसंबर

 

एक बूढ़ा सा दिसंबर,

सेंक रहा दुपहरी की धूप,

उठा रहा फेंके हुए छिलके,

बदल रहा उसका भी स्वरूप।

 

बांध रहा पोटली अपनी,

अंत बस कुछ पास है

कितनी मीठी खट्टी यादें,

जीवन जब तक सांस है।

 

जनवरी की शीत भी देखी,

मार्च का मधुमास भी,

मई का उफनता ताप देखा,

जुलाई में बारिश की आस भी।

 

कुछ खुशी के फव्वारे देखे,

कुछ गम की शाम भी ,

कुछ दौड़ते भागते कदम,

कुछ क्षण का आराम भी।

 

देखे जन्म के उत्सव कहीं,

देखा मृत्यु का नाच भी,

अनजानों का दोस्ताना देखा,

अपनो की द्वेष की आंच भी।

 

अब जब क्षण कुछ ही,

दिल में बस ये आता है,

शेष कभी कुछ होता नहीं,

सिर्फ़ रूप बदलता जाता है ।

 

स्वरचित एवं मौलिक,

©अपर्णा

Comments (0)

Please login to share your comments.