
मुस्कुराहट
मुस्कुराहट
आज फिर चांद खिला हैं आसमान पर,
देख उसे मुस्कुराने को मन करता हैं,
देख मुझे वो बादलों में छुप जाया करता हैं।
याद आती हैं वो शाम जब वो बैठें थें क़रीब मेरे,
कभी हम उनको तो कभी आसमान में देखा करते थें,
क्या समा था, क्या फिज़ा, क्या नज़ारा था।
यूं तो हम दोनों इधर-उधर की बातें किए जा रहें थें,
बातों का कारवां को चलाएं जा रहें थें,
कभी हंसी तो कभी
मुस्कुराए जा रहें थें।
उस पल को याद आज भी दिल की धड़कने तेज़ हो जाती हैं,
जब वो नजरें गराएं मुझे देखें जा रहे थें,
देख उन्हें अपनी पलके झुका लीं थीं मैंने।
कुछ पल बाद पलकें उठाएं जब देखा मैंने उनको,
वो तब भी मुझ पर नजरें टिकाए हुएं थें,
उनकी नजरें मुझे छुएं जा रही थीं,
मुझ में कुछ ऐसे समाई जा रहीं थीं।
बस अब और क्या कहें जनाब,
आज फिर चांद खिला हैं आसमान पर,
आज ना वो समां ,ना वो फिज़ा हैं,
उनकी छुअन को तरसे जा रहीं हूं,
चांद देख ,उस पल को जिए जा रहीं हूं।
रचयिता,
स्वेता गुप्ता
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