बदलाव

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sweta gupta

22 Aug 20241 min read

Published in poetry

सीने में यादों की चुंभन क्यों इतनी तेज़ होती है,
हर पल उन लम्हों की अगन क्यों इतनी तीव्र होती है।

यहां ना करार हैं और ना ही हैं इनकार,
कुछ पूछें भी तो क्या, इतना भी नहीं है अधिकार।

बेताब जज्बातों को बांध रखा है मैंने,
खुलना चाहतीं हूं मगर संभाल रखा है मैंने।

अजीब सी हिचकिचाहट में उलझा रखा है मैंने,
गंभीर शख्सियत की पहचान बना रखी है मैंने।

वो पूछते हैं तुम क्यों बदल गए हो,
इस बदलाव की वज़ह आप हो, ये छुपा रखा है मैंने।

रचयिता,

श्वेता गुप्ता

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sweta gupta

22 Aug 20241 min read

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सीने में यादों की चुंभन क्यों इतनी तेज़ होती है,
हर पल उन लम्हों की अगन क्यों इतनी तीव्र होती है।

यहां ना करार हैं और ना ही हैं इनकार,
कुछ पूछें भी तो क्या, इतना भी नहीं है अधिकार।

बेताब जज्बातों को बांध रखा है मैंने,
खुलना चाहतीं हूं मगर संभाल रखा है मैंने।

अजीब सी हिचकिचाहट में उलझा रखा है मैंने,
गंभीर शख्सियत की पहचान बना रखी है मैंने।

वो पूछते हैं तुम क्यों बदल गए हो,
इस बदलाव की वज़ह आप हो, ये छुपा रखा है मैंने।

रचयिता,

श्वेता गुप्ता

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