
आज़ादी का पर्व मनाए, पर झंडा ना फहराये।
आज़ादी का पर्व मनाए, पर झंडा ना फहराये।
आज़ादी का पर्व है, हर्षो उल्लास से मनाए,
मन में उमंग के लाखों दिप जलाए,
खुशी मनाए, खुशियाँ बांटे,
दूसरों से मिले और मिलाये।
किसी के चेहरे पर मुस्कराहट लाए।
कोई नया गीत, सुने और सुनाये,
राग कोई नया छेडे ।
ऊँचे गगन को छूते, लहराते झंडे को
सलामी दे।
वंदन गान करे, उसकी छाया में,
कुछ पल बिताये।
पर झंडा ना फहराये।
आखिर ऐसा कहने वाला मैं,
क्या कोई क़ाफ़िर हूँ?
क्या मेरी देश भक्ति अधूरी है?
यह सवाल भी उठाए।
पर, झंडा ना फहराये।
सच कहूँ तो, बड़ी आत्मग्लानि होती है,
दिल क्रोध से जल उठता है।
जब एक दिन का राजा,
अपने झंडे को,
इतना प्रेम और सम्मान मिलता है,
उस दिन वह सिर का ताज रहता है।
दूसरे दिन वो ही, कहीं रास्ते में, कहीं
कूड़ेदान में मिलता है।
यह झंडा हमारा गौरव है,
कागज या प्लास्टिक का टुकड़ा नही।
यह क़फ़न है शहीदों का,
ओलंपिक में इसको उठते देखे,
उससे बड़ा कोई सपना नही।
इसलिए यही प्रार्थना है बस आपसे,
अगर आप इसे, अपने जीवन में
हर दिन अपना नहीं सकते,
तो सिर्फ़ एक दिन का प्रेम ना दिखाए,
प्रेम से, आदर से, मुस्कराये और राष्ट्रगीत गाए।
पर झंडा ना फहराये।
पर झंडा ना फहराये।।
रचयिता दिनेश कुमार सिंह
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