मेरा इलाहाबाद

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meenu yatin

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

मेरा इलाहाबाद

मैं छोड़ आई हूँ भले
उसे एक अरसा पहले
आज भी मुझमें कहीं
मेरा शहर बसता है ।

आज भी गंगा यमुना का
संगम है मन में
आज भी यादों का
मन में मेला लगता है ।

अमरूदों की बगिया,
पुराने शहर की गलियां
जुमे की अजान 
और मंदिर की  घंटियाँ 
सावन की घुड़दौड़,
वो दही जलेबियां
आज भी उन जायकों पर
मन फिसलता है ।

आज भी मुझमें कहीं
मेरा शहर बसता है
वो रौनकें  जाने
वैसी हैं या नहीं
बेफिक्र अलमस्त
वो मेरा शहर  है कि नहीं
जाने बदलाव के 
दौर ने  बदला कितना
खीचतां हैं मुझे जो
वो असर है कि नहीं
जाने देखूगीं कब फिर
एक बार उसे
जो मुझसे मीलों दूर मगर
आज भी मुझमें  कहीं
मेरा शहर बसता है ।।

 

रचयिता – मीनू यतिन

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मेरा इलाहाबाद

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meenu yatin

29 Jul 20241 min read

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मेरा इलाहाबाद

मैं छोड़ आई हूँ भले
उसे एक अरसा पहले
आज भी मुझमें कहीं
मेरा शहर बसता है ।

आज भी गंगा यमुना का
संगम है मन में
आज भी यादों का
मन में मेला लगता है ।

अमरूदों की बगिया,
पुराने शहर की गलियां
जुमे की अजान 
और मंदिर की  घंटियाँ 
सावन की घुड़दौड़,
वो दही जलेबियां
आज भी उन जायकों पर
मन फिसलता है ।

आज भी मुझमें कहीं
मेरा शहर बसता है
वो रौनकें  जाने
वैसी हैं या नहीं
बेफिक्र अलमस्त
वो मेरा शहर  है कि नहीं
जाने बदलाव के 
दौर ने  बदला कितना
खीचतां हैं मुझे जो
वो असर है कि नहीं
जाने देखूगीं कब फिर
एक बार उसे
जो मुझसे मीलों दूर मगर
आज भी मुझमें  कहीं
मेरा शहर बसता है ।।

 

रचयिता – मीनू यतिन

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