
जीवन एक जागरण हैं
जीवन एक जागरण हैं
रात भर सोई नहीं थी मैं,
जाने कैसे तरोताजा हूं मैं।
जाने कितने बरसों से सो रही थी,
अब जाकर जागी हूं मैं।
आंखें बंद मैं जाग रही थीं,
जाने कैसे, क्या आज़मा रही थी।
बाहर जो भी हो रहा था,
अपने अंदर मैं झांक रही थी।
मुझे लगा मैं टूट रही हूं,
अपने अंदर मैं घुट रही हूं।
जाने कितनी गहरी नींद से ,
अब जाकर मैं जाग रही हूं।
मैंने कुछ भी नहीं किया हैं,
ये कुदरत मुझसे करवा रही हैं।
यह जीवन एक जागरण हैं,
यही मुझे समझा रही हैं।
अपने अंदर के डर को देख ऊ पगली,
बन जा तू घनश्याम की कमली।
जो जागे इस जागरण में,
फिर उसे क्या मोह सुलाएगा।
जीवन के हर कसौटी में,
वो हर बार खड़ा हो जाएगा।
डरती क्यों है ओ री छोरी,
बन जा तू श्याम की गोरी।
जो फल चाहे, वो मिल जाएगा,
फिर उसे कैसे कोई लोभी बनाएगा।
उठ चलीं हूं, अब इस राह पर,
देखु, किस कगार पर ले जाएगा।
स्वेता गुप्ता
Photo by Min An: https://www.pexels.com/photo/woman-wearing-red-long-sleeved-shirt-1066183/
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