आखिर कैसे

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meenu yatin

16 Aug 20241 min read

Published in poetry

आखिर कैसे

इन जिदंगी की बेडि़यों
को सुलझाऊँ कैसे।
तुम तक आना भी चाहूँ
तो आऊँ कैसे।
हर बार मिलने पे
एक प्रश्न पूछ लेती हो
इन सभी प्रश्नो के उत्तर
लाऊँ भी तो लाऊँ कैसे।
इस छल प्रपंच की दुनिया में,
एक मासूम सी मूरत हो तुम,
तुम्हें इस दुनिया से
छुपाऊँ कैसे।
मैं भागीरथ बन, तपस्या करने
को तैयार हूँ
मगर तुम्हें गंगा बना
इस धरती पर
लाऊँ तो लाऊँ कैसे।
कैलाश सा मैं ,अग्नि सी तुम
तुम्हें ह्मदय से लगाऊँ
तो लाऊँ कैसे।

 

मीनू यतिन

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meenu yatin

16 Aug 20241 min read

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आखिर कैसे

इन जिदंगी की बेडि़यों
को सुलझाऊँ कैसे।
तुम तक आना भी चाहूँ
तो आऊँ कैसे।
हर बार मिलने पे
एक प्रश्न पूछ लेती हो
इन सभी प्रश्नो के उत्तर
लाऊँ भी तो लाऊँ कैसे।
इस छल प्रपंच की दुनिया में,
एक मासूम सी मूरत हो तुम,
तुम्हें इस दुनिया से
छुपाऊँ कैसे।
मैं भागीरथ बन, तपस्या करने
को तैयार हूँ
मगर तुम्हें गंगा बना
इस धरती पर
लाऊँ तो लाऊँ कैसे।
कैलाश सा मैं ,अग्नि सी तुम
तुम्हें ह्मदय से लगाऊँ
तो लाऊँ कैसे।

 

मीनू यतिन

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