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छूटता रहा..
एक घर बदलने से,
बहुत कुछ छूट गया...
छूट गया वो घर,
छूट गया वो आशियाना,
छूट गए वो पडोसी
जिनके साथ बितायी थी,
होली और दिवाली...
बहुत कुछ छुटता रहा ..
छूट गया वो परिवेश
जहाँ पे देखी हमने,
सुख और दुःख का समावेश
हर छोटी बड़ी आनंद की घड़िया
सुख और दुःख के हाथो मे,
लगी हुई हथकड़ियाँ...
बहुत कुछ छूटता रहा..
छूट गयी वो सड़के,
जिनपर हम चहलकदमी किया करते थे,
अपने ही धुन में इधर-उधर घुमा करते थे...
सब कुछ छूट गया,
अब रह गयी केवल यादे
धुंधली सी....मीठी सी यादे....
नम्रता गुप्ता
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