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उलझन

मुट्ठी में आसमां लिए फिरते हो
कदमों में जहां लिए फिरते हो
फिर किस बात की उलझन है
फिर क्यों इतने इम्तिहान लिए फिरते हो?
इस फितरत को छोड़ क्यों नहीं देते
राहत को अपनी तरफ मोड़ क्यों नहीं देते
एक खूबसूरत मंजिल इंतेज़ार में है तुम्हारे
फिर क्यों बेबात की बात लिए फिरते हो ?
पास आ भी जाए तो संभाल पाओगे क्या
जो गुजर गए वो लम्हे फिर ला पाओगे क्या
तो फिर क्यों उन यादों को छोड़ नहीं देते
अधूरे वादों को क्यों तोड़ नहीं देते
क्यों झूठी कसम लिए फिरते हो?
आंखों के धोखे पे यकीन कब तक
झूठी बातों का यकीन कब तक
उदास सा चेहरा सूनी –सूनी आंखें
मोहब्बत का खाली भरम लिए फिरते हो।
मीनू यतिन
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