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झूठा सा रिश्ता

वो एक झूठा सा रिश्ता
झूठा न रह गया होता
तुम कदम न खींचते वापिस
तो, सच हो गया होता ।
लम्हों की रुसवाईयां बरसों ने झेली हैं
तुमने वजहें न दीं होती
तो भला क्यों कोई कुछ कह गया होता।
वक्त के साथ बदलता
काश वो मंजर
मुझमें कुछ भी मुझ सा
न बाकी रह गया होता।
थमा सा है क्यों
रहा क्या बाकी निगाहों में
आंसुओं की बारिश में काश
सबकुछ बह गया होता।
मीनू यतिन
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