फरेब

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meenu yatin

17 Aug 20242 min read

Published in stories

प्यार में डूबा मासूम दिल कितना पागल हो जाता है कि सामने वाला कहे दिन तो दिन,रात तो रात ।

रुचि के साथ भी ऐसा ही हो रहा था।

हैरान थी रूचि के जिस प्यार से वो बचती भागती रही कब वो दबे पाँव मानव के रूप में उसकी जिदंगी में आ गया और उसकी पूरी कायनात पर छा गया।

अपनी पढा़ई पूरी कर के वो एक अच्छी नौकरी करना चाहती थी।अपनी माँ के चले जाने के बाद वो उदास रहने लगी थी। इसी बीच मानव से मुलाकातों ने उसे हँसने मुस्कुराने की वजह दे दी। न जाने कब वो मानव पर निर्भर सी हो गई,बिना मानव के वो बुझी- बुझी सी रहती। जरूरत से ज्यादा प्यार और विश्वास था रूचि को मानव पर। उसकी हर बात पर वो भरोसा करती थी।शादी के सुनहरे ख्वाब देख डाले उसने,मानव ने भी तो उसका साथ निभाने के वादे किए थे ।मानव की दिल्ली में नौकरी लगी तो रुचि खुश भी थी कि अब मानव उसके पिता से शादी की बात करेगा।और दुखी भी थी कि वो आँखों से दूर चला जाएगा।दिन बीत रहे थे और बातों का सिलसिला कम होते होते बंद सा हो गया।मानव को रिमझिम जो मिल गई थी।उसके साथ ही आफिस में काम करने वाली रिमझिम बहुत ही खूबसूरत थी।मानव उसकी तरफ खिंचता चला गया और रूचि का मासूम प्यार उसे रोक न सका।दिलकश रिमझिम के आगे रूचि का भोलापन मानव को दिखा ही नही

बेबस सी रूचि अपना दिल टूटते देखती रह गई।मानव चला गया और अपने साथ ले गया रूचि के सारे सपने।

पत्थर सी हो ग ई थी रूचि ,सबने बहुत समझाया कि शादी कर के अपना घर बसा ले पर उसको तो इन शब्दों से भी नफरत हो चली थी।प्यार में मिले फरेब ने उसे एकदम बदल दिया था।उसने अपनेआप को पूरी तरह पढा़ई में झोंक दिया था।दिन रात की मेहनत रंग लाई और उसे एक नामी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट मिल गई। आफिस मेंउसको बडा़ ही सम्मान मिलता ।ऐसे ही एक दिन एक मीटिंग में जाते हुए बक्शी सर ने रुचि का परिचय मानव से कराते हुए कहा ,"ये मि.मानव बहल हैं आपसे नौकरी के सिलसिले में मिलना चाहते थे।''

रुचि ने मानव की ओर व्यांगत्मक मुस्कान के साथ देखते हुए कहा,'मेरी कंपनी में फरेबियों के लिए कोई जगह नहीं।' इससे पहले कि बक्शी सर कुछ समझ पाते, रूचि मीटिगं में चली ग ई।मानव उसे जाते चुपचाप खडा़ देखता रह गया।

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प्यार में डूबा मासूम दिल कितना पागल हो जाता है कि सामने वाला कहे दिन तो दिन,रात तो रात ।

रुचि के साथ भी ऐसा ही हो रहा था।

हैरान थी रूचि के जिस प्यार से वो बचती भागती रही कब वो दबे पाँव मानव के रूप में उसकी जिदंगी में आ गया और उसकी पूरी कायनात पर छा गया।

अपनी पढा़ई पूरी कर के वो एक अच्छी नौकरी करना चाहती थी।अपनी माँ के चले जाने के बाद वो उदास रहने लगी थी। इसी बीच मानव से मुलाकातों ने उसे हँसने मुस्कुराने की वजह दे दी। न जाने कब वो मानव पर निर्भर सी हो गई,बिना मानव के वो बुझी- बुझी सी रहती। जरूरत से ज्यादा प्यार और विश्वास था रूचि को मानव पर। उसकी हर बात पर वो भरोसा करती थी।शादी के सुनहरे ख्वाब देख डाले उसने,मानव ने भी तो उसका साथ निभाने के वादे किए थे ।मानव की दिल्ली में नौकरी लगी तो रुचि खुश भी थी कि अब मानव उसके पिता से शादी की बात करेगा।और दुखी भी थी कि वो आँखों से दूर चला जाएगा।दिन बीत रहे थे और बातों का सिलसिला कम होते होते बंद सा हो गया।मानव को रिमझिम जो मिल गई थी।उसके साथ ही आफिस में काम करने वाली रिमझिम बहुत ही खूबसूरत थी।मानव उसकी तरफ खिंचता चला गया और रूचि का मासूम प्यार उसे रोक न सका।दिलकश रिमझिम के आगे रूचि का भोलापन मानव को दिखा ही नही

बेबस सी रूचि अपना दिल टूटते देखती रह गई।मानव चला गया और अपने साथ ले गया रूचि के सारे सपने।

पत्थर सी हो ग ई थी रूचि ,सबने बहुत समझाया कि शादी कर के अपना घर बसा ले पर उसको तो इन शब्दों से भी नफरत हो चली थी।प्यार में मिले फरेब ने उसे एकदम बदल दिया था।उसने अपनेआप को पूरी तरह पढा़ई में झोंक दिया था।दिन रात की मेहनत रंग लाई और उसे एक नामी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट मिल गई। आफिस मेंउसको बडा़ ही सम्मान मिलता ।ऐसे ही एक दिन एक मीटिंग में जाते हुए बक्शी सर ने रुचि का परिचय मानव से कराते हुए कहा ,"ये मि.मानव बहल हैं आपसे नौकरी के सिलसिले में मिलना चाहते थे।''

रुचि ने मानव की ओर व्यांगत्मक मुस्कान के साथ देखते हुए कहा,'मेरी कंपनी में फरेबियों के लिए कोई जगह नहीं।' इससे पहले कि बक्शी सर कुछ समझ पाते, रूचि मीटिगं में चली ग ई।मानव उसे जाते चुपचाप खडा़ देखता रह गया।

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