मैं अपना गाँव छोड़ आया हूँ

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meenu yatin

1 Jul 20251 min read

Published in poetry

गहरा था रिश्ता उससे ,
जो तोड़ आया हूँ
मै खुद की तलाश में शहर आयापर
वजूद गांव में छोड़ आया हूँ ।

घर का बरामदा सूना है मेरे बिन
बाबा अकेले बैठें हैं गुमसुम
सिसकी लेती अम्मा को छोड़ आया हूँ
मैं अपना गांव छोड़ आया हूँ ।

संगी साथी रिश्ते नाते
अच्छी बुरी कितनी बातें
खेतों से खलिहानों से
पनघट से, पनिहारओ से
मुंह मोड आया हूँ
मैं अपना गाँव छोड़ आया हूँ।।

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मैं अपना गाँव छोड़ आया हूँ

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meenu yatin

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गहरा था रिश्ता उससे ,
जो तोड़ आया हूँ
मै खुद की तलाश में शहर आयापर
वजूद गांव में छोड़ आया हूँ ।

घर का बरामदा सूना है मेरे बिन
बाबा अकेले बैठें हैं गुमसुम
सिसकी लेती अम्मा को छोड़ आया हूँ
मैं अपना गांव छोड़ आया हूँ ।

संगी साथी रिश्ते नाते
अच्छी बुरी कितनी बातें
खेतों से खलिहानों से
पनघट से, पनिहारओ से
मुंह मोड आया हूँ
मैं अपना गाँव छोड़ आया हूँ।।

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