
इस बार दिवाली, दिवाली है।

मौसम ने करवट बदली है
ठंडक ने ली अंगड़ाई है।
गलियों में शोर पटाखों का
बच्चों के चेहरों पे खुशहाली है।
रंगों से सजे हैं चौखट सारे
आसमान पे आतिशबाजी है।
जगमग-जगमग करती गलियां
मुंडेरों पे सितारों की
झालरें टिमटिमाती है।
बंदनवार लगे दरवाजों को
है इंतेज़ार, किसी के आने का
हर आहट पे नजरें जा पहुंचे
त्योहारों की ये बात निराली है।
ये सोच अमावस हैरान है
बिन चांद ये रात कैसे उजियारी है
इस बार सजेगा घर मेरा
इस बार चांद आंगन में उतरा है।
इस बार राम घर आए तो
इस बार दिवाली, दिवाली है।
कुल दीप बिना त्योहार हैं क्या!
परिवार बिना घर बार है क्या?
कान्हा से बृज में है होली
और राम से अवध की दिवाली है।
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