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सावन

उठती हुई धूल,
घुटती हुई साँसें
सिसकती जमीं को
मनाती बारिशें।
आसमाँ में
चमक उठी बिजलियाँ।
घिर आई काली बदरिया
चल पडी़ ले के ठंडे झोकें
फिर मदमस्त पुरवइया।
खिल उठा चेहरा धरा का
मुस्कुरा दिया गगन।
झूमते गाते देखो
निकल पडा़ सावन।
कजली के गीत
सावन के झूले
मैके से आई
हरियाली चूडियों को
कोई कैसे भूले।
राखी के सुनहरे
रेशमी धागे, बहनें
भाई की कलाई पे बाँधें
त्योहारों का लेकर आगम
झूमते गाते निकल पडा़ सावन।
मीनू यतिन
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