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यादें

यादों को आने से
रोक पाओगी क्या ?
मैं कहूँ ,भूल जाओ
तो भूल जाओगी क्या ?
कभी इन्हीं यादों में
जिया करती थी
ये नहीं रहीं तो
जी पाओगी क्या ?
बीते पलों में हँसी -खुशी
बेपरवाही, बेबसी
के कितने रंग थे
इन्हें खुद से दूर करके
जिंदगी ,बदरंग कर पाओगी क्या ?
आने दो जब भी ये आएं
भले ही आँसू या खुशियों
की सौगात लाएं
जो पल बीत गए
वो वापस नहीं आएगें
मगर यादों में लिपटे पल
तुम्हें अपना एहसास दिलाएगें
उनमें उलझो मत
उनसे ना घबराओ
जीकर निकली हो उनको
ये सोचकर मुस्कुराओ
यादें ही तो हैं
तुम्हारी या
कि अपनों की
मान के अपना
इन्हे गले लगा लो।
मीनू यतिन
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