तीर्थ यात्रा

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dhanesh r parmar "param"

14 Feb 20252 min read

Published in storieslatest

तीर्थ यात्रा

एक दिन सभी शिष्य अपने गुरु के पास गए और बोले कि वो दुनिया भर के सभी धार्मिक स्थानों पर जाना चाहते हैं ताकि उनका मन साफ और पवित्र हो जाए और उनके अंदर कुछ सुधार हो सके। 

गुरु ने उन्हें एक एक करेला दिया और बोले कि जिस जिस जगह तुम घूमो तो अपने साथ ये करेला जरूर रखना। 

शिष्य जिस जिस पवित्र जगह गए, उन्होंने करेले को भी अपने साथ रखा। 

पूरी यात्रा करने के बाद वापस जब वो लोटे तो गुरु जी ने उनसे पूछा की जिस काम के लिए वो गए थे क्या वो पूरा हुआ, क्या उनका मन शांत हुआ। सभी के चहरे पर मायूसी थी।

तभी गुरु ने एक शिष्य से कहा कि सभी से वो करेला ले लो और उसकी सब्जी बनाकर दो।

शिष्य ने ऐसा ही किया। 

खाते ही गुरु ने गुस्से से कहा सभी तीर्थ स्थानों पर ले जाने के बावजूद भी इन करेलों का स्वाद तो बहुत कड़वा है और उनसे इसका कारण पूछा। सभी शिष्य हैरान थे। 

तभी उनमें से एक ने कहा कि करेला तो प्राकृतिक रूप से ही कड़वा होता है। तीर्थ यात्रा पर जाने से इसका स्वाद तो नहीं बदल सकता। 

तभी गुरु ने कहा, बिलकुल सही। मैं भी तुम्हें यही समझाना चाहता हूँ। जब तक इंसान अपने आप में खुद बदलाव नहीं लाएगा, कोई भी गुरु या यात्रा उसकी ज़िंदगी नहीं बदल सकती। सभी तीर्थ यात्राएं वास्तव में हमारे मन के अंदर ही बसी है, जरूरत है सिर्फ ध्यान से देखने की।

धनेश परमार

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तीर्थ यात्रा

एक दिन सभी शिष्य अपने गुरु के पास गए और बोले कि वो दुनिया भर के सभी धार्मिक स्थानों पर जाना चाहते हैं ताकि उनका मन साफ और पवित्र हो जाए और उनके अंदर कुछ सुधार हो सके। 

गुरु ने उन्हें एक एक करेला दिया और बोले कि जिस जिस जगह तुम घूमो तो अपने साथ ये करेला जरूर रखना। 

शिष्य जिस जिस पवित्र जगह गए, उन्होंने करेले को भी अपने साथ रखा। 

पूरी यात्रा करने के बाद वापस जब वो लोटे तो गुरु जी ने उनसे पूछा की जिस काम के लिए वो गए थे क्या वो पूरा हुआ, क्या उनका मन शांत हुआ। सभी के चहरे पर मायूसी थी।

तभी गुरु ने एक शिष्य से कहा कि सभी से वो करेला ले लो और उसकी सब्जी बनाकर दो।

शिष्य ने ऐसा ही किया। 

खाते ही गुरु ने गुस्से से कहा सभी तीर्थ स्थानों पर ले जाने के बावजूद भी इन करेलों का स्वाद तो बहुत कड़वा है और उनसे इसका कारण पूछा। सभी शिष्य हैरान थे। 

तभी उनमें से एक ने कहा कि करेला तो प्राकृतिक रूप से ही कड़वा होता है। तीर्थ यात्रा पर जाने से इसका स्वाद तो नहीं बदल सकता। 

तभी गुरु ने कहा, बिलकुल सही। मैं भी तुम्हें यही समझाना चाहता हूँ। जब तक इंसान अपने आप में खुद बदलाव नहीं लाएगा, कोई भी गुरु या यात्रा उसकी ज़िंदगी नहीं बदल सकती। सभी तीर्थ यात्राएं वास्तव में हमारे मन के अंदर ही बसी है, जरूरत है सिर्फ ध्यान से देखने की।

धनेश परमार

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