.jpeg?alt=media&token=988e7522-0913-45ec-b623-3f44fd0ce172)
मेरी डायरी का वो पन्ना
जिसे स्याही ने उतना नहीं रंगा है,
जितना आंसुओं ने मिटाया है,
जिसे शब्दों ने उतना नहीं संवारा,
जितना कोरेपन ने सहेजा है,
जिसमें लिखा कुछ और है,
और यादें कुछ और ताज़ा होती है,
मेरी डायरी का वो ही पन्ना,
जो दबी चाहों का जनाज़ा होती हैं,
फिर भी किसी चिल्लम की तरह,
मैं उस पन्ने को फिर पढ़ता हूँ,
उसकी आधी अधूरी पंक्तियों में,
नया समझने की कोशिश करता हूँ,
सब कुछ तो बदल गया,
मैं खुद को भी अलग सा पाता हूँ,
बस वही पन्ना मेरा सहारा है,
जहां खुद को खोजने चला जाता हूँ।।
स्वरचित एवं मौलिक
©अपर्णा
मुंबई
Comments (0)
Please login to share your comments.