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पता नहीं

आरंभ से अंत में,
कभी मिलता कुछ भी नहीं,
और मिल भी जाए जो कभी,
ठहरता तो कुछ भी नहीं।

वक्त

आज बड़े अरसे बाद,
वक्त को थामा था मैंने,
मिलने उन बंद पन्नों से,