Author:

Kumar Priyam

दीप्त जग 

मिट्टी, जो सींची गई हर खेत से
हर गाँव से
वो बराबरी से सबका ख़याल करती
कुम्हार के गीले हाथो का शृंगार करती
निखर जाए महि पर

कुछ प्यादे और मात 

आसमान ने अपना पोशाक बदलना शुरु कर दिया और एक उजला रत्न जड़ित चमकीला काला चादर ओढ़े हुए असिगंज कि जमघट मे शरीक होने के लिए रवाना हो गया।

समाहार 

प्रफुल्लित हुई कलियों की पंखुड़ियों को नव रंग मिलेंगे,
शीत से सिकुड़े मुरझाए गुल एक संग खिलेंगे