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अधिकार
यह कैसा जीवन मेला है
अधिकार है पर प्यार नहीं
सब ओर जल से घिरा हुआ
जल है पर पेय जलधार नहीं
अधिकार है पर प्यार नहीं
रुकना नहीं
रुकना नहीं, रुकना नहीं, है राह कठिन पर झुकना नहीं।
हैं कंटक पत्थर राहों में, पर समय है यह, रुकना नहीं।
परिवर्तन
चल अचल जीवन के पथ पर,
कंटक कंकड़ आच्छादित रथ पर,
फिर अपना विश्वास अडिग कर,
परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त कर।
पुष्पांजलि
पुष्प को पुष्प की पुष्पांजलि कैसे दूँ,
हे ब्रह्म रचित प्रकृति तुझे तिलांजलि कैसे दूँ।
तेरी ममता के आकर्षण में, माँ के स्पर्श की अनुभूति है