Author:

Aparna Ghosh

आज़ादी दिवस 

आज खड़े पचहत्तर वर्ष पर,
सोचो कितना कुछ पाया है,
सफलता का इतिहास रचा है,
सब धर्मों का आशीष सरमाया है।

बारिश

जितनी गहरी मुझे जीने की तलब है, ऐ जिंदगी!
तू एक बार तो बरस, मुझे जीने की बड़ी तलब है।

माँ

कभी कुछ लिखा नही तुमको
ना कभी कुछ तुम्हारे बारे में,
शायद तुम इतने करीब हो मेरे
की रूह से रूह बतियाती है।

मुखौटे

मुखौटों से चेहरे छुपाए चलें हैं,

खुद को कैसे भुलाए चलें हैं,

नहीं याद पड़ता किरदार क्या था,