दौड़
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दौड़
ये किस चीज़ की है दौड़ ?
जो हमारे पास नहीं, पहले उसके पीछे दौड़,
जब वो मिल जाए, उसी से भागना है, तो फ़िर दौड़
सोचा है क्यों?
हमे क्या चाहिए, यही नहीं पता।
कभी ज़रुरतों के लिए दौड़,
तो कभी ज़रुरत से ज्यादा के लिए दौड़ ।
कुछ को तो पता ही नहीं, वो किस लिए है दौड़,
बस, सब दौड़ रहे हैं तो, वो इस लिये है दौड़।
आख़िर जाना कहाँ है?
घूम फिर कर यहीं तो आना है ।
जो अधूरा रह गया है, वो अनुभव करना है,
उसे ही तो पूरा करना है।
ये किस तृष्णा के पीछे हम दौड़ लगा रहे हैं ?
क्या है जो हासिल करना हैं ?
ये दौड़ लगाते-लगाते हम जीना ही भूल गए हैं,
खुश रहना ही भूल गए हैं।
इस दौड़ में कई रिश्ते ,अपने पीछे छूट जाते हैं।
जिन्हे हम फिर कभी वापस नहीं ला पाते हैं।
सोचो क्या जिंदगी भर दौड़ते रहना है,
या अब, एक ठहराव लाना है !
सोचो।
स्वेता गुप्ता