बड़े सपने देखो तो !
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बड़े सपने देखो तो !
मैं अपने एक सहकर्मी के साथ बैठा बातें कर रहा था।
बातों –बातों में उसने अपने परिवार के किसी बड़ी उपलब्धि के बारे में बताया और फिर थोड़ा उदास होकर कहा, “ मैंने अपने छोटे-छोटे सपने तो पूरे कर लिए, पर बड़े सपने बाकी हैं ?”
मैंने कहा, “ तुमने बड़े सपने अभी तक देखे ही कहाँ कि पूरे करोगे !!!”
साथियों, ये बात दरअसल हममें से ज्यादातर लोगों पे लागू होती है। हम बड़े सपने देखते ही नहीं, पूरा करना तो दूर की बात है। आप सड़क पर चलते हुए कोई बंगला देखें और कहें कि मेरे पास भी एक दिन ऐसा ही बंगला होगा और फिर उस बारे में भूल कर आराम से सो जाएं तो ये कोई सपना नहीं हुआ।
“सपने वो नहीं होते जो आप सोते वक़्त देखते हैं, बल्कि वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।”
एक आम भारतीय का बड़ा सपना बस इतना बड़ा ही होता है, एक अच्छी सी नौकरी, अपना घर, एक फोर व्हीलर और ऐसी ही छोटी-मोटी चीजें।
जी हाँ, मैं इन्हें छोटी चीजें ही मानता हूँ। ये तो पहले से ही करोड़ों लोग कर चुके हैं अगर आप भी अपनी पूरी जिंदगी बस यही प्राप्त करने में लगा देंगे तो कौन सा बड़ा काम कर लेंगे ?
अगर भौतिक सुख सुविधाएं जुटाने की ही बात है तो एक छोटे से घर की जगह एक बड़े से बंगले के बारे में सोचिए, या एक बड़ा सा अपार्टमेंट बनाने के ख्वाब देखिए, एक छोटी सी गाड़ी में घूमने की जगह लग्जरी कार का बेड़ा (fleet) खड़ा करने के बारे में सोचिए। आम आदमी की तरह सोचेंगे तो आम आदमी की तरह ही जिंदगी बिता देंगे। पैसा जोड़ते, खर्चे काटते और अपनी खुशियों का बलिदान करते। ऐसा मत करिए जिस भी बारे में सोचिए बड़ा सोचिए।
हो सकता है कि आप भौतिकवादी चीजों में ज्यादा नहीं मानते हों और कहें कि मैं इन सब के चक्कर में नहीं पड़ता, सब मोह–माया है, आदि-आदि, वह ठीक है, ये आपकी सोच है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है बशर्ते, ऐसा न हो कि आपके पास पैसे नहीं हैं इसलिए आप ये दिखावा करें कि आपके जीवन में पैसों का महत्व नहीं है। कम से कम अपने आप के साथ तो ईमानदार रहें।
खैर, चलिए मान लिया कि वास्तव में आपके जीवन में भौतिकवादी चीजों का महत्व नहीं है, तो फिर आपके लिए बड़ा क्या है ?
शायद आप कहें कि, “मेरे लिए समाज सेवा करना बड़ा है। मैं अपने खर्चे पर हर साल दो बच्चों को पढ़ाता हूँ”, और इसे आप बड़ा मान लें, लेकिन फिर भी “2” एक बहुत छोटा नंबर है, ऐसा काम करके हो सकता है आप मन ही मन लोगों से प्रशंशा पाना चाहें, बहुत लोग करेंगे भी पर मैं नहीं करूँगा, मैं पूछुंगा – सिर्फ ‘2’ क्यों ? क्यों नहीं आप “200” या “2000” बच्चों को पढ़ाते हैं ?
हो सकता है कुछ लोग सोचें की भाई ये बंदा कम से कम दो लोगों को तो पढ़ा रहा है। और लोग तो वो भी नहीं कर रहे हैं और मैं उसकी प्रशंसा करने की बजाय उससे सवाल कर रहा हूँ ???
हाँ, क्योंकि मेरी नज़र में ये बहुत महत्वपूर्ण बंदा है, ये 99% लोगों से अलग है। इसने अपने शौक पीछे रखते हुए दो लोगों की जिंदगियां बनाई है, पर ये आदमी छोटा सोचता है, अगर इसकी सोच भी बड़ी हो जाए तो हम एक बड़ा बदलाव देख सकते हैं।
आज वो सिर्फ दो लोगों को पढ़ा रहा है, क्योंकि उसने सिर्फ दो को ही पढ़ाने के बारे में सोचा था। एक नहीं हज़ार बार सिर्फ दो को पढ़ाने के बारे में सोचा था। अगर इसने 200 के बारे में सोचा होता तो आज वो 200 को पढ़ा रहा होता, ज़रूरी नहीं है अपने पैसों से, वो अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, या गैर सरकारी संगठनों की मदद लेता लेकिन अगर वो 200 के बारे में सोचता तो आज दो सौ बच्चों को पढ़ा रहा होता और मेरा उससे सवाल करने का यही कारण है। मैं चाहता हूँ हर वो व्यक्ति जो अच्छा सोचता है वो बड़ा भी सोचें।
2 और 200 के सवाल पर एक और सामान्य बात सामने आती है; लोग कहते हैं कि “अगर हर आदमी दो–दो गरीब बच्चों को पढ़ा दें तो कुछ समस्या हल हो जाएगी !”
पर हकीकत ये है कि न कभी हर आदमी दो-दो बच्चों को पढ़ाएगा और न इस तरह से समस्या हल होगी। ऐसा होना होता तो कब का हो चुका होता, इसलिए जो कर रहे हैं उन्हें ही बड़ा, बहुत बड़ा करना होगा।
दोस्तों, बुरे लोगों का बड़ा और अच्छे लोगों का छोटा सोचना एक समस्या है, बहुत बड़ी समस्या है। बुरा सोचता ही कि 1 करोड़ का फ्रॉड कर दें, अच्छा सोचता है कि मेहनत से 1 लाख रूपये बना लें। बुरा सोचता है कि 10000 लोगों की जिंदगी तबाह कर दें, अच्छा सोचता है कि 10 लोगों की जिंदगी संवार दें। क्यों ?
आखिर बड़ा सोचने में मुश्किल क्या आती है ?
जब आप प्रेरित होते हैं तो आप बड़ा सोचने लगते हैं, मेरी जिंदगी भव्य होगी, मैं बहुत बड़ा मुकाम हांसिल करूँगा। पर जैसे ही थोड़ा वक़्त बीतता है आपका जोश ठंडा पड़ने लगता है, अंदर से आवाज़ आती है, अरे इतना कहाँ हो पाएगा ये तो बहुत मुश्किल है।
आपके अंदर की आवाज़ दरअसल सालों से छोटा सोचने की आदत के कारण है। आपको सोच समझकर इसे बदलना होगा। और ये तभी संभव है जब आप इस आवाज़ के बावजूद बड़ा सोचते रहिए, जो करना चाहते हैं उसकी कल्पना करते रहिए। उसे अपनी सफलता की डायरी में लिखते रहिए।
जब आप ऐसा करेंगे तो एक दिन आपके अंदर की आवाज़ भी बदल जाएगी और वो आपकी सोच की हाँ में हाँ मिलाने लगेगी और तब आप उसे हकीकत में बदलता देख पाएंगे।
साथियों, कुछ दिनों पहले मैं एक बैकरी के सामने से गुजर रहा था। मैंने देखा कि वहाँ का गार्ड फटे-चीथड़े कपड़ों में खड़े 8- 10 साल के तीन लड़कों को धुत्कार के भगा रहा था। क्यों है ऐसा ?
आज भी हमारे देश में कोई इतना गरीब क्यों है कि अपना पेट भी नहीं भर सकता ? क्यों नहीं सोचते हम सब बड़ा ? क्यों नहीं खतम करते अपनी साधारण सोच को और बदल डालते अपनी और इस देश की तकदीर को ???
भला हम कैसे आँखें मूँद सकते हैं इन सबसे, हमारा नसीब था कि हम अच्छे घरों में पैदा हुए वर्ना उन तीन लड़कों में से एक मैं भी हो सकता था या एक आप भी हो सकते थे। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कम से कम बुनियादी चीजों के लिए कोई इस बात पर निर्भर ना करे कि वो किस घर में पैदा हुआ है ?
आप अच्छे हैं ये अच्छा है पर आप छोटा सोचते हैं ये बुरा है। इसलिए अपनी सोच को बड़ा कीजिए। हो सकता है आपको इसकी ज़रुरत न हो पर करोड़ों हैं जिन्हें इसकी ज़रुरत है। ईश्वर ने आपको काबिल बनाया है तो उसके इस तोहफे को बेकार मत जाने दीजिए। उठिए, चलिए कुछ बड़ा कीजिए!
धनेश परमार ‘परम‘