चाह
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चाह
घडी़ की सुइयों सी
चलती ज़िंदगी
हर धूप हर छांव
में ढलती ज़िंदगी ।
पलट कर ढूंढती हूँ बार बार
खुद को खो दिया कहाँ
किसी और के
साए में पलती ज़िंदगी ।
कितने अरमान हैं सबके
कितने पूरे करूं आखिर
हर किसी के
हिसाब से बदलती ज़िंदगी ।
मेरा मुझमें बाकी ही क्या रहा
कोई अरमान नहीं है
कोई पहचान नही है
यूहीं बिन जिए
गुजर जाए ना एक दिन
अधूरी सी अनमनी
सी बेनाम ज़िंदगी ।
पर यूँ ही बसर करनी नहीं
जीनी है, काटनी नहीं
एक नाम काफी नहीं
पहचान भी चाहिए ।
जिंदगी को जीने का
अरमान भी चाहिए ।
हर लम्हे को महसूस करूँगी मैं
स्वाद के संग घूँट घूँट पीनी है,
काटनी नहीं जीनी है
ये मेरी है, मेरी अपनी
सम्मान की ज़िंदगी ।
मीनू यतिन
Photo by Nila Racigan: https://www.pexels.com/photo/a-woman-in-sari-standing-under-the-tree-10552595/