बुढ़ापा
![](https://www.storyberrys.com/wp-content/uploads/2023/05/My-project-1-2023-04-18T130852.535.jpg)
बुढ़ापा
“मेरी गुलाबजामुन आज इतनी गुस्से में क्यों है?” अंशुमन ने वंशिका के गाल में हल्का-सा चिटकी काटते हुए पूछा।
“गुस्सा नहीं करूँ, तो फिर क्या करूँ?” वंशिका ने झल्लाते हुए कहा।
“अब मैंने क्या किया? तुम्हें इतनी दूर अपने बाइक से इस झील के किनारे लाया, ताकि हम एक-दूसरे के थोडा और करीब आ सके, फिर भी तुम गुस्सा हो?
“अरे बाबा, तुमसे गुस्सा नहीं हूँ वंशु।” वंशिका तेज जलती हुई धूप से चाँद की शीतलता में बदलने लगी थी।
“तो फिर….”
“अरे, मैं अपने पापा की हरकतों से गुस्सा हूँ।”
“कुछ दिनों पहले तक मेरी हरकतें तुम्हें अच्छी नहीं लगती थी, अब पापा की हरकतों से भी तुम्हें समस्या है।” अंशुमन ने वंशिका की चुटकी लेते हुए कहा।
पर वंशिका की तिरछी क्रोध से भरी आँखों को देख वो डर गया और झील की ओर देखने लगा। कुछ देर तक घोर शांति छाई रही और फिर इस शांति को चीरते हुए वंशिका की आवाज सुनाई देती है।
“पापा को मेरे हर चीज से समस्या है। क्या पहनती हूँ, कहाँ जाती हूँ, क्या खाती हूँ, हरेक चीजों में दख़ल देते रहते है। ‘इट्स माय लाइफ़ एंड आई हैव द कम्पलीट राईट टू डू व्हाट आई वांट टू डू’”
“अरे, वो तुम्हारे पापा है, तुम्हारी फ़िक्र नहीं होगी, तो क्या बगल वाली सविता आंटी की फ़िक्र करे वो?”
“देखो अंशु, मेरे पापा जैसी बात मत करो। मुझे एक बात बताओ, तुम मुझे हमेशा वेस्टर्न ऑउटफिट में देखना चाहते हो और जब मैं कभी सलवार कुर्ती में आ जाती हूँ तो मुझे तुम ही चिढाते हो और मेरे पापा मुझे हमेशा इंडियन ऑउटफिट में ही देखना चाहते है और अगर मैं छुप कर कोई शोर्ट वेस्टर्न ड्रेस पहन लूं तो पूरे घर को वो सर पर उठा लेते है। क्या ये मेरा अधिकार नहीं कि मुझे जो अच्छा लगे, मैं वो पहनूं? क्या मेरे कपड़े मेरे करैक्टर को दर्शाते है?” वंशिका ने सब कुछ मानो एक सांस में कह दिया हो।
“वंशिका, आप क्या पहनते है, उसका हमारे चरित्र से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन अगर तुम्हारे पापा तुम्हारे कपड़े को लेकर ऐतराज़ करते है, तो इसका ये मतलब नहीं कि उन्हें तुम्हारे चरित्र पर कोई संदेह है। मतलब बस इतना ही है कि ये हमारे समाज के चरणों का फर्क है…. किसी भी समाज के विचारों में खुलापन धीरे-धीरे आता है, वंशु।
एक समय महिलाओं का घर से निकलना वर्जित था, क्यूंकि उस समय का समाज उसे गलत समझता था लेकिन अगर तुम्हारे पापा से अब पूछा जाए कि क्या आपकी बेटी को घर से बाहर जाना आपको बुरा लगता है तो वो शायद ये कहेंगे कि बेवकूफ हो क्या, मेरी बेटी बाहर जाएँ, उससे क्या फर्क पड़ेगा मुझे.. उसी तरह अभी तुम्हारे पापा को तुम्हारा छोटा कपड़ा पहनना बुरा लगता हो, पर जब हम बड़े होंगे, तो हमारे बच्चों का छोटे कपड़े पहनने से हमें कोई ऐतराज नहीं होगी।
पर पर पर…
उस समय समाज में कुछ ऐसा परिवर्तन आ चूका होगा, जिससे शायद हमारे बच्चे को कोई ऐतराज न होगा, पर हमें उस बात से ऐतराज होगा क्यूंकि सब कुछ समय और सोच के फर्क पर निर्भर करता है।
और उस समय भी ऐसा होगा, जब हमारे बच्चे अपने प्रेमी या प्रेमिका के साथ झील या फिर किसी माल में बैठ कर हमें इसी तरह कोसेंगे कि हमें उनके हरेक चीजों से ऐतराज है और हम इतने खुले विचारों वाले नहीं है।
तो बस, वंशु, फर्क समय का है, तुम्हारे पापा या माँ का नहीं…” अंशुमन ने इतना कह कर अपनी वंशिका को देखने लगा और धीरे-धीरे मुस्कुराने लगा।
वंशिका को अंशुमन की बात समझ आने लगी थी। उसे यह समझ में आने लगा था कि भविष्य में ऐसा समय भी आएगा, जब उसे उन परिवर्तनों से समस्या होगी, वो उन विचारों को ग्रहण नहीं कर पायेगी, लेकिन उसके बच्चों को उन परिवर्तनों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा और वो उसे सहजता से ग्रहण करेंगे। लेकिन वंशिका को अंशुमन का बातों में हर बार जितना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उसने फिर से अपने हथियार उठा लिए।
“ठीक है अंशुमन, मैं समझ गई कि उन्हें मेरे कपड़ों से क्यों फर्क पड़ता है. लेकिन मुझे ये बताओ कि उन्हें लगता है कि उन्होंने बहुत दुनिया देखी है और हमें इस दुनिया का कोई अंदाजा नहीं है। वो मुझे हरेक चीजों के लिए टोकते है, अगर मैं थोड़े देर तक सो जाऊँ, तो मुझे कोसने लगते कि इतने देर तक सो रही, बुढ़ापे में क्या होगा, वगैरह वगैरह.. उन्हें ये समझ नहीं आता कि हम उनसे कई मामलों में बहुत आगे है और हमें अपनी जिंदगी जीना आता है..’
“बहुत कुछ अनुभव पर निर्भर करता है वंशिका… अगर तुम्हें मैं ये बता दूँ कि आम कितना स्वादिष्ट होता है, उसको खाने से जिह्वा में क्या महसूस होता है तो भी तुम बिना उसका स्वाद चखे ये नहीं बता सकती कि वास्विकता में आम कैसा खाने में लगता होगा?”
यहीं खेल अनुभव का है। हमें लगता है कि हमें लोगों को पहचानना आता है, कौन अच्छा है, कौन हमारे लिए बुरा है, कौन हमारे विकास के लिए हितकर है और कौन दुष्कर, सब हमें पता है लेकिन हमारे पास जिस चीज की कमी है, वो है अनुभव और इन्हीं अनुभवों से हमारे माँ-बाप हमें कुछ करने से रोकते है। पर इसका मतलब ये नहीं है कि वो हमेशा सही हो और आप हमेशा गलत लेकिन बहुत कुछ वो अपने अनुभव से हमें कहते है, जो हमारे लिए हितकर ही होते है। अगर वो आपको हमेशा पार्टी-शार्टी करने से रोकते है, बाहर का जंक फ़ूड खाने से रोकते है तो इसका मतलब बस ये है कि उन्हें पता है कि एक समय के बाद इससे हमारे शरीर को ही नुकशान होगा.”
“सुनो अंशुमन, मुझे ज्यादा बाबा रामदेव का ज्ञान मत दो। तुम मानों या मत मानो, हमारे माता-पिता आउटडेटिड् ही है। उन्हें कितनी बार एक ही चीज समझा दो कि कैसे फेसबुक, इन्स्टाग्राम को चलाया जाता है..कैसे नेटबैंकिंग चलाया जाता है, फिर अगली बार वो दुबारा वहीँ चीज पूछेंगे और फिर उन्हें वही चीज शुरू से समझाना पड़ता है। वो हमारे जैसा अपडेटेड कभी नहीं हो सकते।”
इस पर अंशुमन ने कुछ न कहा और बस मुस्कुरा दिया।
अंशुमन की मुस्कुराहट को देख वंशिका झल्ला गई और बोली,
“क्यों अंशु, इस बार तो तुम मेरी बात पर सहमत होगे ही न…बोलो बोलो….”
“देखों वंशिका, ये आउटडेटिड् और अपडेटेड का कोई पचड़ा नहीं है बस बात समय और उनके बुढ़ापे की है एक समय वैसा भी आएगा, जब हम बूढ़े होंगे और हमें भी अपने बच्चों से छोटी-छोटी चीज़े सिखने के लिए बार-बार उनकी चापलूसी करनी होगी”
“ऐसा दिन कभी नहीं आएगा, अंशुमन. मैं हमेशा अपडेटेड हूँ और अपडेटेड रहूँगी, समझे मिस्टर” वंशिका ने अंशुमन का कौलर प्यार से पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा।
और जैसे ही अंशुमन उसकी ओर आगे बढ़ने लगा तो वंशिका ने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया और हँसने लगी।
“अच्छा वंशु, AI के बारे में तुम्हें पता है?”
“ये कैसा सवाल है अंशुमन? बात क्या चल रही थी और तुम बात कहाँ ले गए?”
“जितना पूछ रहा, उतना बताओ।”
“हाँ, पता है मुझे थोडा-थोडा आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के बारे में।”
“CHATGPT के बारे में पता है?”
“इतना तो नहीं पता, बस पता है कि कुछ google जैसा ही है, पर उससे एडवांस्ड है इससे ज्यादा पता नहीं”
“तो जब तुम इस पीढ़ी की होते हुए भी इन चीजों के बारे में थोडा-सा ही पता है तो ये सोचो कि जब तुम बूढी हो जाओगी, जब तुम्हें घूमने-फिरने के अलावे अपने बच्चों और उनके बच्चों की भी देखभाल करनी होगी और चूँकि तुम भी और मैं भी बूढ़ा हो जाऊंगा, तो एक-दूसरे का ख्याल भी रखना होगा तो फिर क्या तुम अपडेटेड रह पाओगी, जितना तुम आज हो?”
अंशिका के पास कोई जवाब नहीं था। वो हर बार की तरह इस बार भी अंशुमन की बातों में उलझ चुकीं थी और उसके पास पहले की तरह इस बार भी कोई जवाब नहीं था।
“क्या तुम भी अंशुमन… किन बातों में मुझे उलझा कर रख देते हो. झील आएं है तो चलो झील का मज़ा लिया जाए। देखो! वो नाव ओर जाने को बस निकलने वाली है, चलो उधर..” इतना कहकर वंशिका ने अंशुमन को खींचते हुए नाव की ओर तेजी से कदम बढ़ाने लगी और अंशुमन हर बार की तरह इस बार भी अपनी वंशु के साथ उसके पीछे-पीछे चल पड़ा था……
उपसंहार-
बुढ़ापा एक कटु अनुभव है यह अनुभव आपको तब ही होता है, जब आप बूढ़े होते हो। तब समझ आता है असल बात। अगर ये बात सही नहीं होती तो स्टिव जॉब्स जैसे महान हस्ती जिन्होंने अपने जिंदगी में बेसुमार दौलत और समृधि अर्जित की हो, जिन्हें लोग सफलता के चरम सीमा में देखते है, उन्हें अपने अंतिम क्षणों में ये बात समझ नहीं आता कि इस भाग-दौड़ में उनसे क्या छूट गया। जिन चीजों के लिए आप अपने बूढ़े माँ-बाप या किसी वृद्ध व्यक्ति को कोसते हो, वो उनकी गलती नहीं, बल्कि उनकी उम्र का तकाजा है। पूरा खेल अनुभव का है, चाहे वो कॉर्पोरेट जॉब हो या फिर जिंदगी जीने का जॉब….
सागर गुप्ता