पिंजरा
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पिंजरा
“आखिर अकेले क्यों नहीं जा सकती ? क्यों मैं बिना तुम्हारे कहीं नहीं जा सकती? और मैं सहेलियों के साथ ही तो जा रही थी। तुम्हारी पत्नी होने के अलावा भी मेरा कोई अस्तित्व है। तुम समझते नहीं या समझना नहीं चाहते ?” निशा ने दुख और गुस्से से आकाश से कहा।
आज फिर निशा को आकाश ने अपनी सहेलियों के साथ जाने से मना कर दिया।
“निशा, मैं कहीं जाने से मना कहाँ कर रहा हूँ, बस इतना ही तो बोला कि शाम को आता हूँ, तैयार रहना।”
“हर बार यही तो करते हो ! कहीं जाना है तो तुम्हारे ही साथ, किसी से मिलना हो, तो तुम्हारे साथ। क्यों? हर बार तुम्हारे आने का इंतजार करू तब कही जाऊँ! मैं किसी पर निर्भर रहने वाली नहीं थी। मैं अपना काम खुद करती थी। सारा दिन अकेले घर में क्या करूँ? हर बात के लिए तुम्हारे आने का इतंजार करूं?”
“मैं तुमको कभी किसी चीज के लिए मना करता हूँ क्या? फिक्र होती है मुझे तुम्हारी साथ ले चलता हूँ न! शाम को तैयार रहना।” कहकर आकाश अपने आफिस चला गया।
निशा और आकाश की शादी को ३ साल हो गए। निशा आकाश की पूरी दुनिया है । वो निशा को बहुत प्यार करता है उसकी हर इच्छा को पूरा करने का वो प्रयास करता है ।उसे हमेशा ही निशा अपने आस पास चाहिए। पर कभी- कभी उसका ये प्यार निशा को बहुत अजीब लगता था। वो उसका ध्यान तो बहुत रखता ,पर उसे निशा को लेकर हमेशा सशंकित रहना निशा को बहुत तकलीफ देता।
निशा को किसी आदमी से बात करता देख उसके चेहरे पर अजीब से भाव आने लगते, और सवालों का सिलसिला शुरु हो जाता।
निशा की सुंदरता के साथ साथ हँसमुख, मिलनसार स्वभाव के कारण हर कोई उसे पसंद करता । उसके दोस्तों की एक लंबी फेहरहिस्त थी कालेज के हर समारोह में वो हिस्सा लेती। और पढ़ाई में भी अच्छी होने के नाते हर कोई उससे जुड़ जाता।
दो बहनों में छोटी निशा सबकी लाडली थी। जब शादी के लिए आकाश का परिवार निशा को देखने आया। सबको निशा सर्वगुण संपन्न लगी। आकाश ने निशा को एकटक देखता ही रहा। बडी़ ही धूमधाम से दोनों का विवाह हुआ।
आकाश निशा को प्यार तो बहुत करता था पर उसे लेकर असुरक्षा के भाव से भरा रहता ।उसे हमेशा निशा को खो देने का डर रहता। वो शादी के बाद कभी भी ,कहीं भी बिना आकाश के बाहर नहीं गई। शुरू शुरु में तो ठीक था पर ये समय के साथ गहराता जा रहा था । निशा आकाश को चाह कर भी कुछ कह नहीं पाती थी। वो उसका प्यार भी समझती और डर भी। पर उसे इस बात की तकलीफ थी कि आकाश न खुद पर भरोसा कर पाया न उस पर। हमेशा वह चुप रह जाती।
पर आज उसने पूछ ही लिया ,मगर फिर भी आकाश कुछ नहीं समझता कि उसे भी थोडा़ वक्त चाहिए और भी लोग हैं उसके अपने जिनके साथ वो रही है ।हर व्यक्ति की अपनी जगह होती है और हर रिश्ते की अपना महत्व भी होता है और मर्यादा भी।
निशा का सारा दिन उदासी में बीता। शाम को आकाश ने आते ही कहा, “अरे निशा, अभी तक तुम तैयार नहीं हुई! चलना नहीं है क्या?”
निशा ने सोफे से उठते हुए कहा, “नहीं, मन नहीं है। मैं चाय लाती हूँ। “
आकाश के बार बार कहने के बावजूद निशा नहीं गई।
अब उसने कहीं भी जाने की बात करना ही बंद कर दिया।
आकाश कहीं चलने की जिद करता तो अनमनी सी चली जाती, पर खुद की इच्छा जाहिर न करती।
अब वो पहले सी नहीं रह गई।
उसके बदले रूप और स्वभाव से आकाश भी अपरिचित नहीं था। पर वो कुछ कर नहीं पा रहा था।
दिन ऐसे गुजर ही रहे थे।
कि एक दिन आकाश खुश होते हुए बोला, “निशा, मेरी बचपन की दोस्त श्वेता, जो कि बंगलोर में रहती है । वो तुमसे मिलने परसों आ रही है। वो एक दिन हमारे साथ रहेगी, तुमको कोई दिक्कत तो नहीं, देखना तुम उसके साथ बिलकुल भी बोर नहीं होगी ।”
आकाश की बात सुनकर निशा हल्के से मुस्कुरा दी।
आकाश श्वेता को लेने हवाई अड्डे जा चुका था। इधर निशा , श्वेता के लिए नाश्ते का इंतजाम कर रही थी।
गाडी़ का हार्न सुनकर निशा ने दरवाजा खोला सामने उसके पति के साथ एक सुंदर सौम्य और सादगी का मिला जुला रूप लिए मुस्कुराती हुई श्वेता खडी़ थी। आकाश ने एक दूसरे का परिचय कराया।
निशा ने मुसकुराते हुए उसका स्वागत किया। श्वेता ने निशा को गले लगा लिया। और आकाश की ओर देखते हुए कहा” बहुत खुशनसीब हो आकाश!निशा तो बहुत खूबसूरत है। “
निशा मुस्कुरा दी।
श्वेता ने शादी का एलबम देखते हुए निशा से पूछा, ”तुम्हारे तो बहुत सारे दोस्त हैं ,कितनी अच्छी बात है ।मायका भी यहीं बनारस में है न! मुझे तो जल्दी मौका ही नहीं मिलता अपनी माँ के पास जाने का उनके साथ रहने का।बड़ी याद आती है।दोस्तों को देखे खैर जमाना हो जाता है। घर की व्यस्तता और काम के चक्कर में कितना कुछ छूट जाता है।देखो न ,चाह कर भी तुम्हारी और आकाश की शादी में न आ सकी।
हम औरतों को सबके हिसाब से अपना पूरा दिन या यूँ कह लो, अपनी पूरी जिंदगी गुजारनी पड़ती है। ओर मजे की बात ये है कि कोई न समझता है, न पूछता है कि हम क्या चाहते हैं, क्या सोचते हैं।”
निशा श्वेता को बडे़ गौर से देखती रही।
श्वेता ने आकाश की ओर देखा, वो कुछ सोच में पड़ा था।
श्वेता ने आकाश को आवाज दी, “आकाश,कहाँ खो गये?
निशा को श्वेता का साथ बहुत अच्छा लगा।
निशा और श्वेता की आपस में अच्छी दोस्ती सी हो गई।
शाम के आंचल ने सूरज को ढंक लिया, सूरज की लालिमा धीरे धीरे खुद को समेटती जा रही थी। आकाश छत पर खडा़ साझं की इस सुंदरता को निहार रहा था।
तभी श्वेता हाथ में एक उपहार लिए आई, “आकाश, ये तुम्हारे लिए, तुम्हारी शादी का तोहफ़ा “
आकाश ने मुसकुरा कर धन्यवाद किया, और पूछा “निशा कहाँ है ?
“निशा का उपहार उसे मैं नीचे देकर आई, , वो चाय लेकर आ रही है। आकाश, कल मैं जा रही हूँ। कुछ कहना चाहती थी तुमसे”
आकाश ने कहा, “हाँ श्वेता बोलो क्या बात है?”
“तुमको मैं बचपन से जानती हूँ, हम अच्छे दोस्त हैं, एक दूसरे की बात समझते हैं ,मैं नहीं जानती कि मुझे कुछ कहना चाहिए या नहीं पर तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ”
आकाश ने कहा, “बोलो निशा। “
“देखो आकाश, एक औरत होने के नाते एक औरत के मन को समझ सकती हूँ। तुम जानते हो, शादी के बाद एक औरत के जीवन में बहुत बदलाव आ जाता है, नया घर, नया माहौल , कई अपरिचित लोग एक साथ ,एक घर में। सबके साथ तालमेल बिठाने में , सबका स्वभाव जानने, समझने में, थोडा़ समय लगता है। सबके साथ ढलते -ढलते अक्सर एक औरत खुद को खो देती है। जो नहीं होना चाहिए, उसके अपना भी स्वभाव है, किसी भी रिश्ते से इतर उसका अपना भी अस्तित्व है।
एक औरत सबसे पहले अपने लिए सम्मान की इच्छा रखती है। और वो सम्मान देने वाले हर व्यक्ति का सम्मान करती भी है।
सम्मान और विश्वास की नींव पर ही रिश्तों की मजबूती निर्भर करती है। और प्रेम, वो तो स्वतंत्र है, वो जबरदस्ती से नहीं होता है, न टिकता है। “
किसी का प्रेम किसी के लिये सुख का पर्याय हो पैरों की जंजीर नहीं।
पिंजरा सोने का हो तो भी पंछी को घुटन ही होगी।
मैं तुम्हारे नाते आई हूँ पर निशा ने मुझे सम्मान दिया। उसकी आँखो में कोई सवाल नहीं ।
वो तुम पर तो भरोसा करती है क्या तुम भी करते हो?
निशा बहुत प्यारी है आकाश, मुझे उम्मीद है मेरा दोस्त उसे बदलना नहीं चाहेगा। “
जाने क्यों मुझे लगता है उसके चेहरे पर एक उदासी ठहर गई है। वजह तुम जानते हो तो ठीक, नहीं जानते तो पूछो उससे।”
आकाश चुपचाप उसकी बातों को सुनता रहा।
निशा चाय लेकर आई, उसने निगाह भर निशा की ओर देखा, मन ही मन वह उसके आज और अतीत के उसके स्वभाव की तुलना करता रहा। छोटी छोटी बातों पर खिलखिला देने वाली निशा वाकई शांत हो गई । श्वेता वापस चली गई पर जाते जाते एक खामोशी को शब्द दे गई।
उसे छोड़कर आकाश वापस आया तो निशा फोन पर किसी से बात कर रही थी। वो चुपचाप दरवाजे पर रुक गया।
“अरे नहीं दीदी, मैं आ नहीं सकती, दरअसल मेरे घर पर कुछ मेहमान आ रहे हैं ।फिर कभी आ जाऊगीं। “
आकाश कुछ देर कुछ सोचता रहा ।
कमरे में दाखिल होते ही उसने निशा को पुकारा ,”निशा, मुझे लगता है कई दिनों से तुम मायके नहीं गई। माँ याद करती होगीं। राशि दीदी से बात कर लो बच्चों की छुट्टी हो गई होगी। दोनों बहनें मांँ के पास रुक जाओगी तो उनका भी मन बहल जाएगा ।और तुम अपने दोस्तों से भी मिल लोगी।”
“क्या! क्या कहा आपने? “निशा ने हैरानी से आकाश की ओर देखकर पूछा।
आकाश मुस्कुरा कर बोला “तैयारी कर लो। निशा, मुझे आफिस में काम है तुम कल जाकर सबके लिए उपहार ले लेना।”
“पर आपको कौन देखेगा?” चाय बनाते निशा ने कहा।
“अरे मैं देख लूगां । अच्छा हाँ ,मैं आफिस के काम से बाहर जा रहा हूँ। एक हफ्ते के लिए।”
निशा के जहन में कई सवाल एक साथ कौधं उठे। निशा को भरोसा नहीं हो रहा था ये सच में हो रहा। अगले ही दिन राशि दीदी का फोन भी आ गया। निशा ने उनसे बात की तो पता चला आकाश ने उनसे भी बात की।
आकाश आफिस के लिए तैयार हो रहा था निशा आखों में सवाल लिए उसे देख रही थी। कुछ पूछना चाह कर भी पूछ नहीं पा रही थी।
आकाश ने मुस्कराहट के साथ उसका हाथ थाम लिया और बोला, “निशा, मुझे देर से समझ में आया कि मैं कितना गलत था। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, मुझे माफ कर दो निशा। मैं समझ गया हूँ, कि पिजंरा सोने का हो तो भी वो रहता पिजंरा ही है। “
निशा ने डबडबाई आँखों से आकाश की ओर देखकर कहा ,”मुझपर भरोसा रखो आकाश। मैं समझती हूँ । मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ , पर सिर्फ प्यार ही नहीं भरोसा भी करती हूँ।”
“मैं इस दिन का इतंजार कर रही थी कि तुम्हें मुझ पर कब भरोसा होगा!मैंने ऐसा क्या किया है कि तुम मुझ पर भरोसा नहीं करते!”
“नहीं, कुछ भी नहीं किया। ये सब अब दोबारा कभी नहीं होगा। मुझे माफ कर दो, निशा”। आकाश ने नेहा को प्यार से गले लगा लिया ।
आँखों के आँसुओं ने मन का सारा वहम, सारे गिले शिकवे धो दिए ।
मीनू यतिन
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