पूर्ण प्रेम
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पूर्ण प्रेम
प्रेम का ज्ञान तो नहीं,
पर प्रेम पढ़ा है मैंने।
कभी प्रेम किया तो नहीं,
पर प्रेम को समझा है मैंने।
कुछ पढ़ा है मैंने,
राधा का श्याम।
मगन होकर नाचे राधा,
मुरली की धुन जो सुनाए घनश्याम।
कुछ पढ़ा है मैंने,
सीता का राम।
अनेक विधि लुभाए रावण,
तिनके के सहारे डटी है सीता और मन में बसे हैं बस श्री राम।
कुछ पढ़ी है मैंने,
शिव की शक्ति।
द्वंद में जब प्रेम हुआ सती,
प्रतीक्षा की जबतक बनी ना वो पार्वती।
और कुछ पढ़ना है मुझे,
पवित्र प्रेम समीरा।
तो काश कुछ समझ लूं मैं प्रेम को पूरा,
छोड़े बिना कुछ अधूरा।
वैष्णवी सिंह
Photo by Farddin Protik: https://www.pexels.com/photo/woman-wearing-orange-hijab-2124728/