पल
पल
तुम वहीं सुनते हो,
जो मैं बोलती हूं,
वही समझते हो,
जो मैं समझाती हूं।
इस बात में है कितना ही मज़ा।
डर लगता हैं कि,
तुम वो सून ना लो,
जो मैं बोलना नहीं चाहतीं,
तुम वो समझ ना जाओ,
जो मैं समझाना नहीं चाहती।
जैसे चल रहा हैं,
वैसी चलने दो,
इस पल को कुछ और जीने दो,
बस, इस पल को कुछ और जी लेने दो।
रचयिता, स्वेता गुप्ता
Good.
Keep writing.
All the best
Thank you very much Bhaiya 😇🦋
Lovely 💐