आवाज की गूंज
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आवाज की गूंज
एक बच्चा अपने पिता के साथ पिकनिक मनाने गया। गर्मियों की छुट्टियां थीं तो सोचा क्यों ना कुछ समय प्रकृति के नजदीक शांति में गुजारा जाए। यही सोचकर उन्होंने कहीं पहाड़ों पे घूमने का प्लान बनाया। सामान पैक करके पिता और पुत्र दोनों पिकनिक के लिए निकल पड़े।
पर्वतों का नजारा बहुत ही शानदार था, चारों ओर खुला आसमान और हरियाली थी। बच्चा एक छोटी पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास करने लगा, जैसे ही वो थोड़ा आगे चढ़ा उसका पाँव थोड़ा फिसला और एक पत्थर से उसके पैर में हल्की सी चोट लग गई और मुँह से तेज आवाज निकली – “आआह”
अब उसकी ये आवाज गूंज की वजह से वापस उसे सुनाई पड़ी -“आआह”, बच्चे को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये कौन बोला ? वो फिर से जोर से बोला – “कौन है ?” फिर से आवाज गूंज कर वापस आई “कौन है ?”
बच्चे ने उत्सुकतावश फिर चिल्लाया – “कौन हो तुम ?” फिर आवाज वापस सुनाई दी – “कौन हो तुम ?”
बच्चे ने अपने पिता से इसके बारे में पूछा तो पिता ने बच्चे से सर पर प्यार से हाथ फेरा और जोर से चिल्लाए – “तुम कायर हो ?” फिर से आवाज सुनाई दी – “तुम कायर हो ?” पिता ने मुस्कुरा कर फिर जोर से बोला – “तुम साहसी हो तुम विजेता हो” आवाज वापस सुनाई दी – “तुम साहसी हो तुम विजेता हो”
पिता ने बच्चे को समझाया कि ये आवाज तुम्हारी ही है जो पहाड़ों से टकराकर तुमको वापस सुनाई दे रही है, यही जीवन है हम जो बोलते हैं, हम जो सोचते हैं वही हमें वापस मिलता है।
इस आवाज की तरह ही हमारा भविष्य है, हमने जो आज किया वही हमको कल वापस मिलेगा। तुम दूसरों के प्रति मन में इज्जत रखोगे तो वही तुमको वापस मिलेगी।
तुम अगर मन में सोच लो कि तुम कायर हो, तुम कुछ नहीं कर सकते तो तुम वैसे ही बन जाओगे। तुम सोचोगे कि तुम विजेता हो तो तुम वैसे ही बन जाओगे।
धनेश परमार