बात
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बात
बात होठों से निकलते और
तुम्हारे कानों तक पहुँचते पहुँचते
न जाने कब कब बदलती मिलेगी
इन होठों से उस जुबां से
जाने कितनी बार तोडी़ मरोडी़ जाएगी ।
उछाली जाएगी हवा में
और तोली भी जाएगी
और गऱ वजन मिला तो
लफ्जों की हेरा फेरी करके
वजन गिरा के
तेरे सामने कही जाएगी ।
और तू भी तो ठहरा इंसा
कोई खुदा तो नहीं,
समझेगा भी वही ,
जैसा उस पल तेरा मिजाज होगा
खुश है अगर तो नजर अंदाज कर देगा
वरना बेबात बात की बधिया उधेडी़ जाएगी ।
जाने कितनी ही दफा बात बदल जाती है
कही जाती है कुछ
समझ कुछ और आती है
जरा आवाज की लय ताल
नरमी का भी ध्यान रहे
इससे भाव आंँके जाते हैं
भाव से भी आपके ख्याल भाँपे जाते है ।
बात मे हर बार अपनी ही न बोलो
जरा दूसरों की सुन लो
उनका भी मन टटोलो
कभी अच्छा कभी खराब
ये दुनिया का चलन है
असल से दिखता है वही जैसा तेरा मन है ।
मीनू यतिन