चाहता हूँ
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#MONSOON2022
चाहता हूँ
चाहता हूँ भ्रमर बनकर,
पुष्प का रसपान करूं।
चाहता हूँ गगन बनकर,
दिवस का अवसान करूं।
चाहता हूँ ओस बनकर,
तरु पल्लव पर विराजमान करूं।
स्वप्न बनकर चक्षुओं में,
फिर प्रणय का सम्मान करूं।
मध्य रात्रि के पहर में,
मेघों के ठहर में,
चमकती चपला के आक्रोश में,
मधुर बयार के आगोश में,
टप टपाती हुई वृष्टि से,
सूक्ष्म बूंदों के स्पर्श से,
महकती धरा के अधरों से,
लहराती सरिता के कमलों से,
खिली प्रकृति की बाहों में,
फिर प्रणय का सम्मान करूं।
चाहता हूँ भ्रमर बनकर,
पुष्प का रसपान करूं।
रचयिता
आशीष कुमार त्रिपाठी “अलबेला”