कुछ प्यादे और मात
आसमान ने अपना पोशाक बदलना शुरु कर दिया और एक उजला रत्न जड़ित चमकीला काला चादर ओढ़े हुए असिगंज कि जमघट मे शरीक होने के लिए रवाना हो गया। ग़ौरतलब ये चौपाल महि कि हर एक बैठक से मुख़्तलिफ़ है, सब से अलग, सब से ख़ास और उससे भी विचित्र इस पंचायत का सरगना।
यू तो उसका असल नाम उसकी जननी भी शायद ही बता सके पर जिस दिन से ज़बान को शब्दों का उपहार मिला है तब से ख़ुद को वज़ीर ही कहता है और शायद उसने अपना नामकरण तब किया जब पहली बार उसकी मुलाक़ात शतरंज से हुई। ख़ैर इस दोस्ती मे तो कोई खोट नही। ये दोस्ती तो उसने कई सालों तक निभाई आज भी निभाता है पर आज इस दोस्ती का तौर बदल चुका है।
और ये तब से शुरु हुआ जब उसकी जवानी मे वो पहली बार रूबरू हुआ कट्टे से, देसी वाला।
अब वो अमावस की कौनसी रात थी जिस रात उसे मग की तजल्ली ना नसीब हुई, और वो मोहल्ले के गुंडे से जा कर भीड़ गया। अब उससे इसकी कुछ कहा सुनी हो गई कि साहबज़ादे ने सीधा उसके गिरेबां पर हाथ मारा और वो धरा पर लेट गया ।तब उसकी जेब से वज़ीर के हाथ लगा कट्टा।
वो कट्टा जिसे इस गुंडे ने भी अब तक अलंकार की तरह ही सजाए हुए रखा था। यू आते जाते किसी पर दो चार हाथ छोड़ देता था पर किसी के सीने पर बंदूक तानने मे इसके ललाट पर भी झुर्रियाँ आने लगती थी।
वज़ीर ने बंदूक उठाया और सीधा मुड़ कर चलने लगा। पीछे से गुंडे ने गर्दन से पकड़ा और बिजली के खम्बे पर दे मारा। वज़ीर ने जैसे होश सम्भाला कि सीधा बंदूक तान दिया गुंडे पर ।गुंडा हँस-हँस कर चिल्लाने लगा “ मार ना मार ”। और शायद पहली बार वज़ीर ने किसी की बात मान ली और आँखों मे निर्भीकता का सागर लिए ट्रिगर दबा दिया। उसने इसके अंजाम के बारे मे लेश मात्र भी नहीं सोचा और उसके चेहरे पर थूकता हुआ आगे बढ़ गया। तब से निर्भीकता और निष्ठुरता के बीच की लीक धुंधली होने लगी और जो शतरंज कभी मोहरों तक सीमित थी आज वो हर गली कूचे मे भी अपने पैर पसार चुकी है।
अब ये सब मुझे कैसे पता ? वैसे ही जैसे सब को पता है। इस विलक्षण जमघट से।
इस बैठक के भी बहुत सारे कायदे क़ानून और उसूल है। यहाँ केवल एक ही वक्ता है “वज़ीर ख़ुद ” और बाकि सारी भीड़ श्रोतागण । हर शाम यहाँ शतरंज खेली जाती..… असली वाली । और वज़ीर हर रोज़ किसी नए मुख़ालिफ़ के साथ खेलता। जहाँ खेल कभी मनोरंजन के लिए खेला जाता था अब वहाँ महफ़िल केवल इस लिए सजाई जाती है ताकि वज़ीर अपने बलिष्ठ होने और बाकियों के कमतर होने के प्रमाण दे सके। अपनी हर चाल के बाद अपने पौरुष का एक किस्सा सुनवाता ।
आज फिर खेल शुरु हुआ साथ ही शुरु हुए किस्से। वज़ीर आया, हाथों मे दराते जितनी नुकीली अंगुठिया पहने और गले मे ज़ंजीर जितनी मोटी और कोहिनूर जितनी चमकीले चेन पहनें । वहाँ सड़क के दोनों किनारों पर एक एक दुकान थी, मिठाई पकवान की। उनमे से एक पर वज़ीर जा बैठा और आँखों से इशारा करके मिठाई पेश करने बोलता । बगल वाले दुकान वाले ने अपनी दुकान पर आने की दरख़्वास्त करी और वज़ीर ने क्षण भर के लिए मुड़ कर ऐसे देखा कि दुकान वाला बोल पडा, “जो हुक्म सरकार”।
एक नौजवान को खेलने बुलाया गया वज़ीर ने अपने गले से आवाज़ कर के उसका नाम पूछा वो संकुचाया सा कहता “ अविरल ” । उसे हाथ से इशारे करके बैठने के लिए कहा। खेल शुरु हुआ और दोनों ने अपनी पहली चाले चल दी । वज़ीर ने अपने एक आदमी को उसकी वीर गाथा शुरु करने बोली। ना जाने ये किस्से लोग कितनी दफ़ा सुन चुके थे और वो कितनी बार सुना कर थक चुका था पर अगर कोई वहाँ ना जाता तो उसे अलग से ख़ातिर-दारी का न्यौता मिलता।
बहरहाल किस्सा शुरु हुआ वज़ीर के नाम के उद्घोष के साथ। कहता वो गुंडा याद है जिसे उसके ही कट्टे से मार दिया था।
सब ने हामी भरी।
“उसके दो लड़के थे। कितने लड़के?”
सब ने मजबूरन बिना उत्साह के चिल्लाया “दो ”।
“हाँ । दो लड़के उसमे से बड़ा वाला एक दिन भिड गया वज़ीर से, कहता मैं बदला लूँगा । अरे, फिर क्या वज़ीर ने दिए दो कस कर कड़क से। आज तक चार गली दूर से बाहर जाता है, कितने गली?”
“चार ”
“उसका छोटा बालक खुद को राजा कहता राजा। गैंग बनाने चला गैंग। गली के चार लुचे-लफ़ंगे जमा करे और बन गया उनका सरताज।”
वज़ीर ने सबको चुप कराया । खेल फस चुका था। प्यादो ने सारी जगह घेर ली थी और उसके मोहरों के पास चलने कि जगह नहीं बची तो उसने अपना एक प्यादा बढ़ाया।
अविरल के प्यादे के पास काटने के अलावा कोई गुंजाईश नहीं थी, सो प्यादे से प्यादे काटे गए और ऐसे ही कई प्यादो के शहीद होने के बाद मैदान साफ़ हो गया. वज़ीर को रफ़्तार-ए-बेपनाह से दौड़ने जगह मिल गई।
कहानी से अल्पविराम हटाया गया और वो पूर्णविराम की तरफ रवाना हुई।
“और फिर हुई असिगंज की सबसे मशहूर लड़ाई। उसके सारे गुंडों को पानी पीला दिया। अरे! हवा ने बहना बंद कर दिया, धरती ने घूमना बंद कर दिया, नदियों का पानी सूख गया”।
अब यहाँ पर है एक अंदर की बात। वो बात जो किसी ने भी किसी से नहीं कही पर सबको मालूम है। जब दो गुटों मे लड़ाई होती है, और दोनों तरफ से शरासन से तीर मारे जाते है तो वो दोनों के उर को चीर देता है। इस लड़ाई मे वज़ीर के आदमियों को भी काफ़ी चोट आयी कईयों के हाथ पैर कट गए और अब वो किसी काम के नहीं रहे तो भला वज़ीर उनका भार क्यों हि ढोता। वैसे भी उसके लिए तो अब वो गलियाँ महफ़ूज़ हो हि गयी थी। तो फिर अपने कुछ प्यादे शहीद करने मे किस बात का ग़म।
लगभग आधे से ज़्यादा मोहरे मैदान ए जंग मे अपना हुनर बिखेर के अपने अंतिम घर को लौट गए।
फिर से आवाज़ आयी। ”उसकी गैंग मे बस दो चार बचे । अरे तब तो वो बच्चों को भी लेने लगा ,बच्चों को। हाँ बस एक था उनमे से, एक ही था वो उसका दाहिना हाथ , हाथी था उसका हाथी। अरे अब वो भी कहाँ बच पाया पर …..”
अब खेल ने सबका ध्यान आकर्षित करना शुरु कर दिया दो पल के लिए उसने भी बोलना बंद कर दिया। दोनों ने एक दूसरे के वज़ीर को मार डाला और दोनों तरफ़ से हाथियों ने बेड़ा सम्हाल लिया । कभी कोई किसी को शह देता तो अगली दफ़ा दूसरा भी शह देने से नहीं चूकता और बेचारा राजा एक एक कदम चल कर खुद को कितना हि बचा पता, खेल ने ओहदा तो दिया पर हुनर नही।
एक और अंदर की बात है जो व्यापक राज़ है। राजा ने जिन बच्चों को अपने साथ शामिल किया वो सारे के सारे वज़ीर की प्रतिबिंब थे उसकी परछाई। अब सारे के सारे प्यादे वज़ीर तो नही बन पाते पर किसी की किस्मत रही तो कुछ वो मक़ाम भी हासिल करते है । ऐसे बच्चों जोड़ते-जोड़ते कई साल हो गए और कई बच्चे अब रिस्ट-पुष्ट युवक बन चुके थे और इस गिरोह का हाथी , अब उसके दांतो के साथ बाल भी सफेद होने लगे थे।
कहानी फिर शुरु हुई और लोग बिना किसी शग़फ़ के उससे सुनने लगे ।
“हाँ तो वो उसका दाहिना हाथ एक दिन आया रात मे चुप चाप आया वज़ीर को मारने, अपने 2-4 बच्चे लिए। फिर क्या जैसे ही ख़बर लगी बंदूक , दराते सब निकल गए और वो हाथी इतना बेवकूफ़ कि एक बच्चे पे मैंने गोली चलाई तो खुद सामने आ गया। जिस बच्चे ने दो दिन पहले बोतल से दूध पीना बंद किया है उसे बचाने चला। अरे फिर क्या उसके जाते हि पूरी गैंग खत्म । अब यहाँ का एक ही बादशाह है। कौन है ?”
लोग चिल्लाते है “ वज़ीर है वज़ीर है ।”
अब खेल मे कुछ ही मोहरे बचे थे ।अविरल के पास एक हाथी और एक ही प्यादा बचा था। लाज़िम सी बात है राजा तो था ही उसके बिना खेल क्या। वहीं वज़ीर के पास अभी कुछ एक प्यादे थे और राजा बिल्कुल कोने मे उनके पीछे महफ़ूज़ एक घोड़ा बिल्कुल चुस्त दुरुस्त और एक ऊँट। पर अविरल का प्यादा रानी घर से दो कदम ही दूर था और उसके साथ साथ चलता हाथी। उसकी बगल की पगडंडी पर उससे एक खाना आगे। वज़ीर ने चाल चली घोड़े को कूदाते हुए वहाँ लेकर कर चला गया कि अगली चाल मे अविरल का हाथी निगल ले। यू तो घोड़ा घास खाता है पर खेल मे ये सब चलता रहता है। पर अविरल ने उसपर ध्यान दिए बिना अपना प्यादा बढ़ा दिया आगे। हाथी को कर दिया कुर्बान और वज़ीर ने बिना किसी गहन चिंतन के अपने घोड़े से हाथी मार दिया । पर प्यादा यू घोड़े के बगल मे खड़ा था और घोड़ा प्यादे को ताकने के सिवाय कुछ ना कर सका और प्यादा आखिरी घर पहुच और एक नकारा प्यादा रानी मे तब्दील हो गया और इसी के साथ पड़ा वज़ीर के राजा पर शह और अगली चाल मे अविरल ने घोड़े को रात के अँधेरे मे कैद कर दिया। और अचानक एक ज़ोर की आवाज़ सन्नाटे का पैगाम ले कर आई और पीछे से किस्सागोई की आवाज़ धीमी पड़ने लगी। सब पीछे मुड़े और सभी की आँखों मे खौफ़ का अक्स झलकने लगा। एक चित्रकार ने अपने शस्त्रो से एक शरीर की पेशानी पर एक सुर्ख़ धब्बा बना दिया और उस ललाट से बहता लहू लोगों के जूतो से आकर टकराने लगा। इतने मे लोग खुद को सम्हाल पाते कि एक निर्भीक आदमी ने सीधा वज़ीर के मुँह पर बंदूक रख दी ।
और कहता “ तेरा घोड़ा तो गया और अब राजा भी जाएगा। मैं हूँ यहाँ का नया वज़ीररररररर ” और कहते ही हाथ से सारे मोहरे उड़ा दिए। इतने मे वज़ीर ने मौका पाते ही उसे धक्का दिया और भागते भागते अपनी बंदूक निकाली। इधर से इसने एक गोली मारी उधर से वज़ीर ने एक गोली दागी और गलियों के अँधेरे मे पनाह ढूँढने लगा। और एक प्यादा वज़ीर बनने की जुस्तजू मे शिकार पर निकल पड़ा। यहाँ पीछे लोग और भी भौचक्के हो चुके थे। अब तक एक के सदमे से उभरे नहीं थे कि तीन-तीन लोगो के ज़ीस्त की संकीर्ण रहगुज़र अपनी मंज़िल से भटक गई। दो मिठाई की दुकाने यतीम हो गई, अनाथ हो गई और शायद उनमे से एक यही बोलकर कड़ाही मे जा गिरा, ”जो हुक्म सरकार का”।
इस चूहे बिल्ली कि दौड़ मे , इस हसरत, लिप्सा, इस ललक का यही अंजाम है कि कोई शतरंज की बाज़ी तकमील तक पहुँचे या नहीं कोई जीते या नहीं या फिर कोई भी ना जीते हर बार कुछ प्यादे शहीद ना हो इसकी कोई गुंजाईश नहीं। शायद इनमे से कुछ तो वो प्यादे भी थे जिन्होंने इस खेल का हिस्सा बनने के लिए भी कभी हामी नहीं भरी पर हर रंज का यही निष्कर्ष है कि हर चाँद की, महताब की अमावास आजाती है।
आसमान ने अपना पोशाक बदलना शुरु कर दिया और एक काला चादर ओढ़े हुए असिगंज कि जमघट मे शरीक होने के लिए रवाना हो गया ।।।
कुमार प्रियम