चतुर्भुज रूप का दर्शन है दुर्लभ
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*भगवान ने अर्जुन को पहले विश्वरूप, फिर चतुर्भुज रूप और फिर द्विभुज रूप दिखाया
चतुर्भुज रूप का दर्शन है दुर्लभ
चतुर्भुज का मतलब है- परमात्मा चारों दिशाओं से हमें सँभाल रहा है। वह सच्चिदानंद चार हाथ वाला हमारी रक्षा कर रहा है।
आज के मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तुम जिस कल्पवृक्ष की कल्पना करते हो, वह माँ का गर्भ ही है। बच्चा पेट में जो-जो सोचता है, वह मिल जाता है। माँ के गर्भ में बच्चा एक तरह के तरल पदार्थ के द्रवों में तैरता रहता है-जैसे भगवान विष्णु क्षीर सागर में तैरते हैं। क्षीर सागर यानी दूध का सागर कहीं दूध का सागर होता है? यह प्रतीक है। तो माँ के गर्भ में बच्चा क्षीर सागर में तैरता रहता है और वहाँ सहस्त्र फनों वाला शेषनाग उसकी रक्षा करता रहता है यह चतुर्भुज रूप हुआ न यह माँ के गर्भ का प्रतीक है।
अर्जुन जब विराट रूप देखकर डर गया है, भयभीत हो गया है, तब वह अपनी माँ के गर्भ में पहुँचकर निश्चिंत हो जाना चाहता है। जो हिमालय गया होगा उसको माँ के गर्भ में पहुँचने की साधना हमने कराई होगी कि कैसे तुम अपनी माँ के गर्भ नाल से जुड़ जाओगे, कैसे तुम माँ के गर्भ में चले जाओगे, कैसे उस क्षीर सागर में जाकर विष्णु की तरह आनन्दित रहोगे, कोई चिंताएँ नहीं, कैसे चिंतारहित – मुक्त- भय रहित तुम उस माँ के गर्भ में पड़े रहोगे?
इस चतुर्भुज रूप ही से मनोवैज्ञानिकों ने चिंतन करके आईसीयू बनाया है। आई.सी.यू. भी माँ के गर्भ का प्रतीक है। जहाँ जाकर तुम बेहोश होकर निश्चिंत रहो। लेकिन जितना भी वैज्ञानिकों ने बनाया, यह आई. सी.यू. माँ का गर्भ नहीं बन पाया।
अर्जुन कह रहा है कि मैं तुम्हारे विराट रूप को देखकर भयभीत हो गया हूँ, काँप गया हूँ, मैं अब अंदर जाना चाहता हूँ, जहाँ मैं निश्चिंत हो जाऊँ, जहाँ मुझे कोई चिंता ही न रहे, जो मैं चाहूँ वह मिल जाए, खाना चाहूँगा- अपने आप मिल जाएगा, साँस माँ लेगी तो मुझे भी मिल जाएगी, माँ खुश होगी तो मैं भी खुश हो जाऊँगा, मेरी कोई माँग ही नहीं रहेगी, मैं वहाँ प्रसन्न रहूँगा।
इसी से हमारे यहाँ के ऋषियों ने मोक्ष की भी कल्पना की है। मोक्ष में कोई जरूरत नहीं होती है। यह माँ का गर्भ भी मोक्ष का प्रतीक है। मृत्यु भयभीत करती है। भय से आदमी काँपता है, डरता है। यदि यह कल्पवृक्ष भी बाहर आ जाए तो फेर में पड़ जाओगे। एक आदमी जंगल से जा रहा था कहीं। गर्मी की दोपहर में थकान से चूर संयोग से कल्पवृक्ष के नीचे आराम करने लगा। भूख लगी ही थी इसलिए इच्छा हुई कि यदि अच्छा स्वादिष्ट भोजन करने को मिल जाता तो कितना अच्छा होता। बस फटाफट भोजन थाल में लगकर आ गया। कहा कि यार! यह तो गजब हो गया। यहाँ कोई भूतप्रेत है क्या जो सुन लिया और मिल गया अच्छा भोजन ? करने लगा। पेट भर गया। अब सोचने लगा कि क्या अच्छा होता एक पलंग मिल जाता, आराम कर लेते। तुरंत पलंग भी आ गया। फिर सोचा काश! ठण्डी हवा जरा बहती। ठण्डी हवा भी बहने लगी। अब सोचा कि क्या यह तमाशा हो रहा है? कहीं ऐसा न हो भूत-प्रेत आकर हमको पीटने लगें ? बस भूत-प्रेत प्रकट हो गए। पीटने लगे।
तो देखो, तुम जो-जो सोचते हो, सो सो मिलता है। तुम यदि दुखी हो कहीं तो अपनी माँग के कारण ! तुम दुख इतना माँग चुके हो कि भूल गए हो। वह तुम्हें मिलते जा रहा है, परमात्मा देते जा रहा है, अब तुम दुख अनुभव कर रहे हो। तुमने माँगा ही क्यों ? तुमने इतना माँग लिया कि माँग कर भूल गए। वह दिए जा रहा है- अच्छा भी, बुरा भी। अब भूत-प्रेत ही माँग लिया कि पीटे तो वह पीटे जा रहा है। समझ गए। पर तुम्हारे माँगने का क्रम बंद नहीं होता है।
गुरुजी भी एक मिनट मिलते हैं-बस माँगना शुरु कर देते हो-यह चाहिए, वह चाहिए। कितना माँगोगे ? जितना माँगोगे उतना बंधन में पड़ते चले जाओगे। इसलिए एक बार माँग बंद करके तो देखो।
चतुर्भुज का मतलब है- परमात्मा चारों दिशाओं से हमें सँभाल रहा है। वह सच्चिदानंद चार हाथ वाला हमारी रक्षा कर रहा है। इसलिए अर्जुन भी कहता है कि इस चतुर्भुज रूप से मेरी रक्षा करो। जाना पहचाना है। चतुर्भुज जो माँ का, माँ के गर्भ का प्रतीक है, अर्जुन उस माँ के गर्भ में प्रवेश कर जाना चाहता है। यानी परमात्मा में प्रवेश कर जाना चाहता है। और जब परमात्मा में तुम प्रवेश कर जाओगे तो सुरक्षा की जिम्मेवारी उसकी। अब तुम निश्चिंत होकर सो सकते हो। जैसे पाँच-छ: साल का छोटा-सा बच्चा कहीं से झगड़ा करके, मारपीट करके, लड़ करके आकर माँ की गोद में छिप जाता है। माँ भी अपने आँचल में छिपा लेती है। अब वह जानता है कि हम परम सुख में आ गए, हम पर अब कोई ब्रह्मास्त्र तक प्रयोग नहीं कर सकता है यानी अब हमारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता है। कोई बिगाड़ भी नहीं पाता है। तो इसीलिए जो चतुर्भुज रूप अर्जुन माँग रहा है परमात्मा का, वह माँ का गर्भ माँग रहा है।
।। हरि ओम ।।
‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति गीता ज्ञान मंदाकिनी भाग ६ से उद्धृत…
एकादश अध्याय – ५२ श्लोक।
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‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
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