इश्क़ की रेत
इश्क़ की रेत
इश्क़ की रेत फिसलती चली जा रही है,
चुनौतियों की तपिश ने फिसलन बढ़ा दी है।
कैसे रोकूं मैं तुझे, तू क्यों इतरा रही है,
मुझे देख, तू क्यों इतना मुस्कुरा रही है।
तभी अंदर से आवाज़ आई…
जो तेरा है, वह तेरा होकर ही रहेगा,
चुनौतियों की तपिश पर डांटा रहेगा।
फिसलने दो उस रेत को और देख उनकी रज़ा,
तू नादान ना समझें बस देख, लें मज़ा।
यदि रब की मर्ज़ी हुई, तो ओस की मोती रोक लेंगी उस रेत को,
यदि रब की मर्ज़ी ना हुई, तो बारिश बन कोई रोक ना सकेगा उसको।
इश्क़ की रेत फिसलती चली जा रही है,
तू नादान ना समझें बस देख उनकी क्या है रज़ा।
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Thank you very much Philo 😊🥰
Very well written and expressed..❤️❤️