एक दिन बिना इंटरनेट के
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एक दिन बिना इंटरनेट के
“इतिहास में नाम, घटनाएँ, तिथियाँ सच होती है, बाकी सब झूठ होता है..
साहित्य में नाम, घटनाएँ और तिथियाँ झूठ होती है, बाकी सब सच होता है…”
रात को लगभग 6 से 7 घंटे अपनी मासूका से बात करके और अंत के 30-45 मिनिट वीडियो कॉल पर एक-दूसरे को तथा एक-दूसरे के अंतर्वस्त्रों को देखने के बाद मेरी नज़र मेरे सामने दीवार में टंगी काटे वाली घड़ी पर पड़ी। घड़ी का काटा रात के 3:30 बज जाने का संकेत दे चुका था। वैसे तो बड़े-बूढों के लिए ये ब्रह्म मुहूर्त होता है और आयुर्वेद की माने तो सुबह जागने का एकदम सही समय यही है। लेकिन प्रेमी-प्रेमिका के नज़र से देखा जाए तो ये समय लगभग-लगभग सोने का शुरुवाती क्षण होता है, जब प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे से फ़ोन में घंटों बात करने के बाद आँखें बंद कर सोने का प्रयास करते है और बीच-बीच में मोबाइल भी देखने लगते है कि कहीं कुछ बहुत महत्वपूर्ण संदेश उनके प्रेमी के द्वारा भेज तो नहीं दिया गया।
मैं भी इस समय तक अपनी ‘बाबू-सोना’ को शुभ रात्रि कह कर सोने का प्रयास करने लगा था। वैसे नींद तो लगभग आधे घण्टे बाद आई, तब तक मैं अपने बिछावन में करवटें बदलते रहा। नींद ने मुझे कब अपने सपनों के बाहुपाश में बांध लिया, पता भी न चला।
अलार्म 9 बजे सुबह से बजना शुरू हुई और लगभग 9:30 बजे मैंने अपनी बंद पड़ी आँखों, जो मानो वर्षों से यूं ही बंद पड़ी हुई थी और इतने साल से बंद रहने के कारण अब उसी में इतनी स्वाभाविक हो चुकी थी कि अब खुलने को राजी न थी, को बहुत जतन करके थोड़ा-सा खोला और घड़ी बंद करके दुबारा नींद के आगोश में सो गया।
फ़ोन की घंटी लगातार बजने के कारण 10 बजे लगभग मैंने उठने का दृढ़ संकल्प लिया और बंद आँखों के साथ बिछावन से एकाएक उठ गया। उठने के बाद मैंने अपनी आँखें खोली और उस धुँधले से रूम में अपना चश्मा खोजने लगा। इधर-उधर देखने के बाद बिछावन की दाई ओर रखे धुँधले दिखने वाले टेबल में टीवी रिमोट के बगल में मुझे मेरे चश्मा का धुँधला दिख रहा ‘चश्मा केस’ दिखाई दिया और मैंने उस केस से अपना चश्मा निकाल कर उसे अपने आँखों में पहन लिया। अब सब कुछ स्पष्ठ और साफ नज़र आने लगा था। अब कुछ धुँधला नहीं था।
मैंने हर बार की तरह सबसे पहले अपना स्मार्टफ़ोन उठाया और उसे देखने लगा।
मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। ‘बाबू’ के नाम से करीब 25-30 मिसकॉल(missed call) आये हुए थे और बहुत सारे मैसेज भी उसी नाम से दिख रहे थे, जो हरेक 5 मिनिट में भेजे गए थे।
मैंने अपनी मासूका का नाम ‘बाबू’ के नाम से सेव किया हुआ था। वैसे तो पहले उसका नाम ‘जानेमन’ के नाम से सेव रखा था, पर परिवार वालों के फ़ोन देखे जाने के डर से अब उसका नाम ‘बाबू’ नाम से सेव रखा था। कभी कोई कुछ पूछता कि किसी बाबू का कॉल आ रहा है, कौन है? तो उन्हें बोल दिया करता कि मेरे दोस्त के भाई का बेटा है। मुझे हमेशा कॉल किया करता है। सबसे मजे की बात तो ये है कि वो मेरी बात मान भी लेते है।
ख़ैर, मैंने दिलथामे अपनी ‘बाबू-सोना’ का संदेश एक-एक करके पढ़ने लगा, जो कि मेरे मोबाइल के मैसेज बॉक्स में मिसाइल की तरह लगातार दागे जा रहे थे।
मैंने नए मैसेज से पुराना मैसेज एक-एक कर पढ़ना शुरू किया।
“अच्छा किया अनिकेत… बहुत अच्छा किया। मेरी दोस्त लोग ठीक कहा करती थी कि वो अच्छा लड़का नहीं है। उसे तुमसे नहीं, तुम्हारे जिस्म से प्यार है। वो तुम्हें भी अन्य गर्लफ्रैंड की तरह छोड़ जाएगा।”
“तुम्हें एक बार भी नहीं लगा कि तुम मुझे धोखा देकर शांति से जी पाओगे। भगवान से खौफ़ खाओ अनिकेत।
“आई स्टिल लव यू, बाबू। प्लीज मुझे ऐसे इग्नोर मत करो।”
“अगर तुम्हें कोई नई लड़की मिल गई है तो आई डोंट केअर। मेरे पास भी लड़कों की लाइन लगी है। तुम नहीं तो कोई और सही..”
“बताओ तो। क्या सच में यही बात है???”
“बाबू, क्या सच में तुम्हारे लाइफ में अब कोई नई लड़की आ गई है???”
“तुम मुझे इतने देर से रिप्लाई क्यों नहीं दे रहे? अनिकेत, प्लीज एक बार फ़ोन उठा लो। लेट मी एक्सप्लेन एवरीथिंग.. प्लीज् बाबू”
“क्या तुम उस दिन के बात से गुस्सा हो बेबी, जब रात को तुम मुझे फ़ोन कर रहे थे और मेरा फ़ोन व्यस्त था… तुम्हारी कसम मैं अपनी बहन से बातें कर रही थी।”
“कहाँ हो तुम? ऐसा क्या कर रहे हो कि मेरा वीडियो कॉल भी नहीं उठा सकते??? किसके साथ हो, सच बताओ।”
“व्हाट्सएप पर रिप्लाई नहीं कर सकते तो कम से कम फ़ोन तो उठाओ। तुम्हें व्हाट्सएप पर न मैसेज जा रहा और न वीडियो कॉल। मुझे वीडियो कॉल करो अभी के अभी..”
“बेबी, रिप्लाई तो करो। पिछले एक घंटे से तुम्हारे रिप्लाई की प्रतीक्षा कर रही हूं। अब उठ भी जाओ सुबह के 8 बज गए है।”
“व्हाट्सएप चेक करो बेबी। देखो, सुबह-सुबह मैंने तुम्हें क्या भेजा है.. रात को इतने मन्नतों के बाद भी मैंने वो नहीं भेजा था तो तुम्हारा सड़ा हुआ मुँह देखने लायक था। हा हा …”
“बेबी, उठ जाओ न अब। तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा।”
“गुड मॉर्निंग शोना बाबू। मेरा गुल्लू-पुल्लू क्या कर रहा है?? मेली याद नहीं आ लही आपको।”
जब मुझे मैसेज का क्रम समझ नहीं आया तो मैंने फिर पुराने मैसेज से नया मैसेज पढ़ना शुरू किया।
जब मैं नीचे से ऊपर मैसेज पढ़ ही रहा था, तब तक उसका 5-6 और मैसेज आ चुका था।
मुझे समझ नहीं आया कि बात क्या है? उसके मैसेज में व्हाट्सप्प में वीडियो कॉल करने का साफ-साफ निर्देश था।
जब मैं उसके आए हुए नए मैसेज पढ़ने जा ही रहा था कि तभी मेरी नजर मेरे जिओ सिम ऑपरेटर के मैसेज पर पड़ी।
“सरकार के निर्देशानुसार, आपके क्षेत्र में इंटरनेट सेवा अगली सूचना आने तक बंद कर दी गई हैं।
As per government instructions Internet services have been stopped in your area till further notice.”
ये मैसेज पढ़ कर मेरी स्थिति मानो ‘काटो तो खून नहीं’ वाली हो गयी थी। मैंने दुबारा मैसेज को धीरे-धीरे पढ़ने लगा कि शायद मैंने कुछ गलत तो नहीं पढ़ लिया है। पर संदेश स्पष्ट था।
मैंने अपने स्मार्टफोन का डेटा स्पीड चेक किया, जो कि 0 केबी/सेकंड की चाल दर्शा रहा था। फिर भी मैंने व्हाट्सएप खोला और अपने बाबू को तुरंत टाइप करके ‘सॉरी बाबू, अभी उठा। नेट काम नहीं कर रहा इधर” लिख कर भेजा। लेकिन कोई फायदा न हुआ। मैसेज उसके पास पहुँचा ही नहीं।
मैंने तुरंत उसको फ़ोन कॉल लगाया। कई बार कॉल करने के बाद भी जब किसी ने फोन नहीं उठाया तो मैंने उसे तुरंत मैसेज किया, “प्लीज कॉल उठाओ। बात करनी है।”
उधर से रोने वाली ईमोजी के साथ मैसेज बॉक्स में मैसेज आया, “एवरीथिंग ईज ओवर नाउ। डोंट कॉल मी एवर अगेन।”
मेरा दिल धक से हो गया और मैंने कॉल करने की असफल 5-6 कोशिश की। लेकिन अंत में भगवान ने मेरी सुन ली और उसने मेरा कॉल उठा लिया।
“बाबू, सुनो, फ़ोन मत काटना। पहले मेरी बात तो सुनो। फिर मन करे तो मत बात करना।” मैंने एक ही सांस में कह दिया।
“अब क्या बचा है अनिकेत हमारे बीच में? सब कुछ तो खत्म हो गया है।”
“कुछ ख़त्म नहीं हुआ है। बात तो …”
मेरा इतना कहना था कि उसने बात बीच में काट दी,
“चुप रहो तुम। अब जो सुनना और सुनाना हो तो उस करमजली को सुनाना, जो तुम्हारे साथ अभी है वहाँ।”
“पागल हो क्या? यहाँ कोई नहीं है। बस इंटरनेट काम नहीं कर रहा इधर”
“पागल मत बनाओ मुझे। अब मैं तुम्हारे चिकने-चुपड़ी बातों में नहीं आने वाली हूँ।”
“सच कह रहा.. सुनो तो..”
“अगर ऐसा रहता तो मेरा इंटरनेट कैसे काम कर रहा है? इतनी भी बेवकूफ़ नहीं हूँ, जितना तुम समझ रहे अनिकेत। सच बताओं अनिकेत, ये सब बहाना तुम्हें वो करमजली सिखा रही है। है न…”
“यार, बाबू। मेरे एरिया में इंटरनेट बंद कर दिया गया है। शायद तुम्हारे एरिया में ठीक हो सब। वैसे भी तो तुम दूसरे राज्य में रहती। शायद मेरे राज्य में कुछ समस्या हुई है।”
“झूठ मत बोलो। क्या प्रूफ़ है? स्क्रीनशॉट भेजो।”
“अच्छा ठीक है। लाइन पर ही रहो, भेजता हूँ।” यह बोलकर अनिकेत ने उस मैसेज का मैसेज बॉक्स में जाकर स्क्रीनशॉट लिया और उसे तुरंत अपनी मासूका के व्हाट्सएप पर भेज दिया।
जब व्हाट्सएप मैसेज में एक भी टीक नहीं हुआ, तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।
“बेबी, स्क्रीनशॉट भेजूँ भी तो कैसे? व्हाट्सएप मैसेज तो जा ही नहीं रहा न। इंटरनेट नहीं है न।”
“वाह अनिकेत वाह। मुझसे झूठ बोलने का एक और रास्ता खोज लिया तुमने। मैंने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा?”
“अरे विश्वास तो करो। बोलो तो मैं तुम्हें मैसेज बॉक्स से उस मैसेज को कॉपी कर तुम्हारे मोबाइल के मैसेज बॉक्स पर फारवर्ड कर देता हूँ। तब तो विश्वास होगा तुम्हें।”
“एक और तरीका। शर्म करो अनिकेत। मैसेज बॉक्स से तो कोई भी वैसा मैसेज टाइप करके भेज सकता है। तुम मुझे उस लड़की से बात करवाओ, जो तुम्हारा और मेरा बात अभी सुन रही है।“
“शोना, जानू… यहाँ कोई नहीं है। सिर्फ मैं हूँ।”
“ठीक है अनिकेत। अच्छा सिला दिया तुमने मेरे प्यार का। यार ने ही लूट लिया घर यार का।” पुराने फ़िल्म का ये मशहूर गाना उसने ताना के रुप में मारकर फ़ोन रख दिया।
थोड़े देर बाद मुझे उसने मैसेज किया।
“बाए फॉरएवर अनिकेत”
सुबह उठ कर इतनी सारी घटनाएं हो जाने के बाद मेरा दिमाग फटा जा रहा था। उसे और समझाने की ताकत मेरे अंदर थी नहीं।
मैंने वास्तविक घटना का पता लगवाने अपने मित्र शुश्रुत को कॉल किया।
उसने जैसे ही फ़ोन उठाया तो उसकी रुआँसी आवाज़ सुन कर मुझे समझ आ गया कि उसके साथ भी आज वही हुआ था, जो कि मेरे साथ अभी तुरंत घटित हुआ था।
मैंने कहा, “क्या बे! तुम्हारे साथ भी वही हुआ??”
“हाँ यार, तुम्हें कैसे पता? तुम्हारे साथ भी क्या?” उसने रुआँसे आवाज में ही उत्तर दिया।
“हाँ यार, उसने क्या कहा तुम्हें, शुश्रुत?”
“यार, उसने बोला कि ऐसा बहाना दुबारा मेरे साथ किया तो जॉब से बाहर निकाल दूँगा। “
मैं अकचका गया और पूछ डाला,
“साले! तुमने अपनी बॉस को पटा रखा है?”
“अबे, क्या बात कर रहे हो? मेरा बॉस लड़का है, लड़की नहीं।”
ये सुन मैं और सदमे में आ गया कि अब यही देखना बाकी था।
“तुम्हें लड़के पसंद है शुश्रुत?? आई मीन इट्स ओके.. पर तुमने कभी बताया नहीं?”
“अबे ! क्या बोल रहा? इंटरनेट के साथ तेरा भी दिमाग़ फ्यूज हो गया है क्या?”
“शुश्रुत, थोडा स्पष्ठ समझाओ प्लीज।”
“‘वर्क फ्रॉम होम’ तो कोरोना काल की देन है, अब इंटरनेट चल ही न रहा हो तो मेरी क्या गलती इसमें? मेरा बॉस मुझे बोल रहा कि मैं बहाना कर रहा और मुझे नौकरी से निकालने की धमकी दे रहा। तुम, अनिकेत, क्या बड़बड़ा रहे, तुम्हारी बात समझ नहीं आ रही।”
ये सुनकर मुझे समझ आ गया कि उसकी और मेरी परेशानी यद्यपि तो आज इंटेरनेट न चलने की देन थी, लेकिन उसके और मेरी परेशानी में जमीन-आसमान का फर्क था।
उसकी परेशानी तो बस एक नौकरी के जाने की थी। पर मेरी समस्या तो उससे और व्यापक और गहरी थी। इधर तो मेरी जान जाने पर आ पड़ी थी।
मैंने उसे इंटरनेट-सेवा बाधा से सम्बन्धित कुछ पता चलने पर कॉल करके बताने का बात कह कर फ़ोन रख दिया और इस आशा के साथ नित्य कर्म करने में जुट गया कि कुछ देर में इंटरनेट सेवा बहाल हो जाएगी और मैं अपनी बाबू शोना को समझा लूंगा।
कुछ घंटों तक यूँ ही थोड़े-थोड़े देर में बार-बार मोबाइल का स्क्रीन अनलॉक करता रहा कि इंटरनेट चालू हुआ या नहीं। शायद इंटरनेट की लत के कारण मोबाइल को बार-बार अनलॉक करना मेरी आदतों में सुमार हो चुका था। ऐसा लग रहा था मानो कि जीवन में कुछ बचा न हो। एक-एक क्षण काटना बड़ा कष्टदायी था। इसी बीच मैंने अपनी प्रेमिका को कई बार मैसेज और कॉल किया, पर कोई जवाब न आया। दिल की बैचैनी बढ़ती चली जा रही थी।
अंत में दिन के 2 बजे तक मोबाईल को हाथ में थाम कर रखने पर भी इंटरनेट सेवा चालू नहीं हुई तो मैं झल्ला कर मोबाईल टेबल में ही फेंक दिया और अपनी ‘फटफटी’ उठा कर दोस्तों से मिलने निकल गया।
एक अजीब सन्नाटा हर तरफ़ बिछा हुआ था। रास्ते में जितने लोग मिले, सब के बीच चर्चा का विषय इंटरनेट सेवा बंद होने की ही थी, मानो उसके सिवा जीवन में कुछ बचा ही न हो। सब के सब उदास और बैचैन दिखाई दे रहे थे। न वो रील्स बना पा रहे थे और न ही फूहड़ वीडियो देख पा रहे थे और न ही अपने प्रेमी-प्रेमिका से बात कर पा रहे थे। मानो पूरा क्षेत्र किसी के मृत्युशोक में डूबा पड़ा हो।
दोस्तों के पास पहुँचने पर भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिली।
कुछ दोस्त अपनी मासूका के साथ फोन कॉल में लगे थे। मैं उनके लिए खुश था कि कम से कम उनकी प्रेमिका उनके सच को सच समझ तो रही है और एक ‘मेरी वाली’ है, जो इतने छोटे से बात का बतंगड़ बनाकर पूरे बनारस को सर पर उठा ली थी। कुछ दोस्त हर बार की तरह वहीं बैठ कर सिगरेट फूँक रहे थे और कुछ दोस्त मोबाईल के अंदर गेम में घुसे हुए थे। जब मैंने देखा कि मैं उनमें से किसी भी कैटेगरी के दोस्त के साथ उस वक्त के लिए फिट नहीं बैठ रहा था तो मुझे वहाँ से चुपचाप निकल जाना ज़्यादा मुनासिब लगा।
मैं अपनी ‘फटफटिया’ उठाकर यूँ ही पास के एक छोटे से गाँव के रास्ते पर निकल पड़ा। आजतक जीवन में इतना अकेला कभी महसूस नहीं हुआ था। या तो मैं भी अपने दोस्तों के जैसे अपनी मासूका के साथ लगा रहता था या फिर इंटरनेट के जरिये सोशल मीडिया या मनोरंजन वाले किसी एप्प से। ऐसा नहीं था कि शुरू से मैं ऐसा था। स्मार्टफोन के आने से पहले मेरे जीवन में बहुत कुछ होता था करने के लिए। दोस्तों साथ घूमना, अच्छी कहानियां पढ़ना, बड़े-बूढों से बात करना या बच्चों के साथ खेलना।
ऐसा नहीं है कि अब मेरे जीवन में दोस्त नहीं है या मैं उनके साथ घूमता नहीं हूँ। पर अब उसमें बहुत अंतर आ चुका था। अब हमसब अपने अड्डे में एक साथ बैठे रहने पर भी सिर झुकाकर अपने-अपने मोबाईल से लगे रहते थे या फिर मोबाईल या किसी सोशल मीडिया की ही ज्यादातर चर्चा में लगे रहते थे या फिर इंस्टाग्राम में रील्स बनाते रहते थे। पहली वाली बात अब महसूस नहीं होती थी। पर फिर भी स्मार्टफोन के प्रयोग के कारण डोपामाइन हार्मोन के श्रावण से वो पुरानी बात न रहने पर भी खुशी की ही अनुभूति होती है।
वैसे तो उस गाँव वाले रास्ते पर दोस्तों के साथ मैं बहुत बार गया था और हमारी बहुत सारी पिक्चर्स भी वहाँ खिंचवाई हुई थी। पर आज एक अलग-सा अनुभव हो रहा था, मानो प्रकृति बसंत के बाद पुनः तरुवर हो चुकी हो। सब कुछ खुशहाल और जीवंत नज़र आ रहा था। मेरे अंदर भी एक नई ऊर्जा का संचार होने लगा था।
घंटों से जो निराशा के बादल मेरे दिलोदिमाग में घर कर गए थे, वो भी अब छंटने लगे थे। पहली बार मैंने खुद को प्रकृति के इतने करीब महसूस किया था। उस गाँव वाले रास्ते में काफी आगे जाकर एक विशालकाय आम के वृक्ष के नीचे मैंने अपनी फटफटी खड़ी की और वहीं उसके नीचे बैठ गया। शाम की शीतल हवा मुझे छू कर बार-बार निकल जा रही थी, उसके छुवन से मेरे शरीर में एक गुदगुदी भरी सिहरन पैदा हो रही थी। मैं वहीं लेट गया औऱ कब मुझे नींद आ गई, पता न चला। करीब 1 घंटे बाद मेरी नींद खुली। सूर्य का अब कोई नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था। बस उसकी लालिमा मानो पूरे आकाश को लाल स्याही से रंग दी थी।
मैं अब तरोताजा महसूस कर रहा था। न मुझे मोबाईल से दूर होने का गम सता रहा था और न ही किसी प्रकार की घबराहट हो रही थी। मैंने अपनी फटफटिया उठाई और फ़िर उसी रास्ते अपने घर की ओर चल दिया।
मैं जैसे घर पहुंचा तो मेरे रूम से मेरे मोबाईल की रिंग की आवाज़ साफ-साफ सुनाई दे रही थी। मुझे लगा कि मेरी मासूका को अपनी गलती का एहसास हो गया होगा और शायद इसलिए वो कॉल कर रही होगी। मैं तुरंत घर घुस कर सीढ़ीयों में लगभग दौड़ते हुए अपने कमरे में पहुंचा और अपना मोबाइल उठाया। पर थोड़ी निराशा हाथ लगी। फोन शुश्रुत कर रहा था।
मैंने फ़ोन उठाया।
“हाँ, सूसू बोलो। क्या हुआ?”
“यस ब्रो, अब सब ठीक हो गया। इंटरनेट चालू हो गया है।”
मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और मैं चहका, “सच्ची क्या, सूसू??”
“हाँ, बे.. वैसे तुम्हारा कौन-सा काम इंटरनेट के चक्कर में फँस गया था, जो सुबह इतने उदास-उदास जान पड़ रहे थे?”
मैंने उसे अपनी मासूका और उसकी सारी बात उसको बतला दी।
“एक दम घोंचू हो बे, तुम भी और तुम्हारी वाली भी।” उसने हँसते हुए कहा।
“इसमें घोंचू की क्या बात है बे?” मैंने झूठ का गुस्सा दिखाया।
“साले, फ़ोन कॉल से भी तो अब वीडियो कॉल में बात की जा सकती है। जरूरी थोड़ी है वीडियो कॉल व्हाट्सएप या इंटरनेट से ही किया जाए। घोंचू साला…”
मुझे अब अपनी इतनी बड़ी बेवकूफी का पूर्ण एहसास हो चुका था।
पर मैं दो चीज़ों के कारण खुश था। एक तो मैं अपनी मासूका से वीडियो कॉल में बात कर सकूँगा औऱ दूसरी खुशी मुझे इस बात की थी कि पूरी दुनियां में मैं अकेला घोंचू नहीं था। घोंचूपन में मेरा साथ देने वो भी थी……
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आज के युग में इंटरनेट ने पूरे दुनियां को अपना उपनिवेश बना लिया है। हमें लगता है कि हम अपने स्मार्टफोन के मालिक है, लेकिन अब इंटरनेट ने स्मार्टफोन को आपका मालिक बना दिया है। अब आप अपनी इच्छा से फोन या इंटरनेट का प्रयोग नहीं करते, बल्कि वो आपको उसका प्रयोग करने के लिए तरह-तरह से विवश करती है। कभी वो आपके मोबाइल में किये गए विभिन्न क्रियाकलापों की जासूसी करके उसी के अनुरूप आपको सोशल मीडिया में फ़ीड देती है, ताकि आप अपने स्मार्टफोन के एप्प को लगातार बिना जरूरत के ऊपर-नीचे स्क्रॉल करते रहे। तो कभी वो आपको नग्न और फूहड़ चित्रों का नोटिफिकेशन देकर आपको उसका गुलाम बनने को रिझाती है।
तो क्या मोबाईल और इंटरनेट का त्याग कर देना चाहिए? बिल्कुल नहीं। आज के युग में वो आपका एक अभिन्न अंग बन गयी है और उसके बिना आज के दौर में रहने का मतलब सौ साल पीछे जीना है।
बस आपको ध्यान ये रखना है कि आप उसका सही और उचित प्रयोग करके उसे अपने इशारों में नचायें, न कि वो आपको….
सागर गुप्ता
Great work. Enjoy the content on “ek din Bina internet ke”. Love to read it alone.
Thank u ☺️
Super duper hit….it sounds real
🙂
Bahut badhiya 👍👍
Thank u 🤗